एन. रघुरामन का कॉलम:इस दिवाली उनसे खरीदें, जो सम्मानपूर्ण जीवन और आर्थिक आजादी चाहते हैं
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एन. रघुरामन का कॉलम:इस दिवाली उनसे खरीदें, जो सम्मानपूर्ण जीवन और आर्थिक आजादी चाहते हैं
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यदि आप वाराणसी के गोडोलिया चौक के पास की व्यस्त और तंग गलियों में खरीदारी कर रहे हैं तो आपकी नजरें शायद पांच फीट से नीचे नहीं जाएंगी। आपकी आंखें हमेशा आगे बढ़ने के लिए जगह तलाशती रहेंगी, क्योंकि इस क्षेत्र में छह घंटे तक भी फंसे रहना आम है। गोडोलिया की संकरी गलियों में लगभग हमेशा भीड़-भाड़ रहती है।
खासकर, दीपावली जैसे त्योहारी सीजन और पर्यटन सीजन में, जब अक्टूबर से मार्च तक यह इलाका व्यस्त रहता है। इसके अलावा, ई-रिक्शा और मोटरबाइकों की चिल्ल-पौं भी पैदल यात्रियों का जीना मुहाल कर देती है। हर शहर में ऐसी भीड़-भाड़ वाली गलियां होती हैं, जहां लोग घोंघाचाल से चलते हैं। इधर-उधर देखे बिना हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश में रहते हैं। जैसे वाहनों का बम्पर-टु-बम्पर ट्रैफिक होता है, वैसे ही इन गलियों में एड़ी-से-एड़ी सटा कर चल रहे खरीदार कभी-कभार ही दाएं-बाएं मुड़ पाते या नीचे देख पाते हैं।
हर साल, दीपावली पर जब शहर लाखों दीयों की रोशनी से जगमगाने को तैयार होता है तो बहुत-से लोग सड़क किनारे से आ रहे उस उजाले को देखना भूल जाते हैं, जो कभी-कभी फुटपाथ से या आपके पैरों के पास से आता है। वे आपको पुकारेंगे नहीं, ना यह कहेंगे कि ‘ले लो, ले लो।’
वे शांति से अपनी कृतियों के साथ बैठे रहेंगे। वे असंगठित क्षेत्र के विक्रेता, लेकिन सम्मानित कारीगर हैं। वे सजावटी सामान, दीये या अन्य चीजें बनातें हैं, जो रोशनी के त्योहार में रंग भर देती हैं। वे दीपावली के भाव को रंग, सिलाई और सुंदर हैंडमेड क्रिएशंस में समेटने के लिए जुटते हैं।
शायद उनकी चीजें आपके घर में एक-दो दिन से ज्यादा न टिकें या हो सकता है कि वे हफ्तेभर रंग बिखेरें। उनकी चीजें लंबी नहीं चलतीं, सिर्फ इसीलिए अमूमन उन्हें फुटपाथ के ऊपर की उन दुकानों में जगह नहीं मिलती, जहां हमारी नजरें रहती हैं। लेकिन भरोसा करें कि जब आप उनसे एक चीज भी खरीदते हैं तो रोशनी का त्योहार उनके लिए उत्सव से कहीं ज्यादा बन जाता है। आपके द्वारा दिया गया पैसा इस बात का प्रमाण है कि कैसे आपने महिला लोक कलाकारों को गरिमा और आर्थिक आजादी दी, जिन्होंने बारीकी से उन सुंदर वस्तुओं को हाथों से बनाया।
भारत के अनौपचारिक रोजगार क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा बनाने के तौर पर इस सड़क किनारे की बिक्री का अपना आर्थिक महत्व हो, लेकिन इस हफ्ते में दीये और सजावटी सामानों की बिक्री हमारी कारीगरी आधारित आजीविका को प्रोत्साहित करने की संस्कृति का जीवंत उदाहरण है। कइयों के लिए तो दीया, मोमबत्ती जैसे सजावटी आइटम बनाना पीढ़ियों पुराना शिल्प है।
सड़क किनारे की बिक्री इन कारीगरों की पारंपरिक सामुदायिक कला को जिंदा रखती है, जो एक से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती है। इसके अलावा, वे विधवाएं हो सकती हैं या किसी शराबी की पत्नी, जो समाज में बात करने से शरमाती हैं, लेकिन बहादुरी से सड़क पर बैठकर सजावटी सामान या हैंड-पेंटेड दीये खरीदने के लिए आपको पुकारती हैं। उनसे मोलभाव न करें। उन्हें बढ़े हुए राउंड-फिगर में भुगतान करें। और पैसे देते समय कहें, ‘आपको दीपावली की शुभकामनाएं’।
क्योंकि यदि वाराणसी जैसे विकास कार्य आपके शहर में भी हुए तो संभव है कि कुछ सालों बाद आप ऐसा ना कर पाएं। इस दिसंबर या जनवरी 2026 से वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से उस गोडोलिया तक रोप-वे शुरू हो सकता है, जो प्रसिद्ध घाटों और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का प्रवेश द्वार है।
यह 3.8 किलोमीटर का रोप-वे वाराणसी को ला पाज (बोलीविया), रियो डी जनेरियो (ब्राजील), मैक्सिको सिटी (मैक्सिको), टूलूज और ब्रेस्ट (फ्रांस) जैसे चुनिंदा शहरों की सूची में शामिल कर देगा, जिनके पास ऐसे इंट्रा सिटी ट्रांसपोर्ट सिस्टम हैं। इसमें नुकसान सड़क किनारे के विक्रेताओं का ही होगा।
फंडा यह है कि इस दीपावली अपनी खरीदारी का कम से कम 10% उन विक्रेताओं के लिए रखें, जो सम्मानजनक जीवन और आर्थिक आजादी ढूंढ रहे हैं। इससे उनका त्योहार और भी रोशन हो जाएगा।
			


