Nighttime heart failure: पिछले कुछ सालों में हार्ट फेल्योर की घटना काफी बढ़ गई है. बदलती लाइफस्टाइल, तनाव और खानपान इसको खूब ट्रिगर कर रहे हैं. इसमें सबसे बड़ी समस्या जो है, वह क्रॉनिक हार्ट फेल्योर को लेकर है. यह अचानक आने वाले हार्ट अटैक की तुलना में धीरे-धीरे शरीर में विकसित होता है और बढ़ता है. यह तब तक नजरअंदाज हो जाता है जब तक कि यह गंभीर न हो जाए. इसकी सबसे खतरनाक बात यह है कि इसमें हार्ट को रात में ज्यादा दिक्कत होती है, जब शरीर आराम की स्थिति में होता है और दिल दिन की तुलना में अलग तरह से काम करता है. कभी-कभी यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है. चलिए आपको बताते हैं कि इसके शुरुआती लक्षण को कैसे पहचाना जा सकता है और इसको रोकने के लिए क्या-क्या उपाय हो सकते हैं.
नींद के दौरान हार्ट फेल्योर
रात में जब इंसान सोने के लिए लेटता है, तो शरीर में तरल पैरों से छाती की तरफ आ जाता है. इससे होता यह है कि फेफड़ों और दिल पर दबाव बढ़ जाता है. हार्ट फेल्योर वाले मरीजों के लिए यह और खतरनाक होता है, क्योंकि उनका दिल पहले से कमजोर होता है, इस वजह से उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है. इसे पैरॉक्सिस्मल नॉक्टर्नल डाइस्पनिया कहते हैं, यानी अचानक नींद में उठकर हांफना. कई लोगों की स्थिति इससे भी खराब होती है, उनको ऑर्थोप्निया होता है, यानी सीधा लेटने पर सांस लेने में परेशानी होने लगती है.
नींद में ही क्यों असर
अब सवाल आता है कि आखिर नींद में ही यह इतना असर क्यों डालता है. इसके पीछे कई कारण होते हैं. जैसे कि धीमी धड़कन, नींद में दिल की धड़कन धीमी हो जाती है. कमजोर दिल वालों के लिए यह खतरनाक है क्योंकि दिल ठीक से खून पंप नहीं कर पाता. इसके साथ ही CHF मरीजों को रात में बार-बार पेशाब आता है, जिससे नींद टूटती रहती है. कई बार ऑक्सीजन की कमी भी इसका कारण बनती है.
रात में दिखने वाले शुरुआती लक्षण
अगर बात करें कि रात में इसके शुरुआती लक्षण कौन से होते हैं, तो इनमें सीधा लेटने पर सांस फूलना, इससे बचने के लिए आराम से सांस लेने के लिए कई तकियों की जरूरत पड़ना. दूसरा, रात में कई बार उठकर बाथरूम जाना. तीसरा, नींद के बीच सांस के लिए परेशान होना. चौथा, धड़कन का कंट्रोल में न होना और सीने पर भारीपन लगना. पांचवा लक्षण है कि पूरी नींद लेने के बाद भी थका हुआ महसूस करना. अगर आपको इस तरह की कोई दिक्कत दिख रही है, तो आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. रिसर्च बताती है कि 45 साल की उम्र से पहले पुरुषों को हार्ट फेल्योर का खतरा ज्यादा होता है. लेकिन 50 साल के बाद पुरुष और महिलाएं दोनों ही समान जोखिम में रहते हैं. महिलाओं में मेनोपॉज के बाद हार्मोन बदलने से दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.
हार्ट फेल्योर के स्टेज और रात का असर
रात में हार्ट फेल्योर के 4 स्टेज नजर आते हैं. पहले स्टेज में हल्के लक्षण, जैसे रात में हल्की सांस फूलना या ज्यादा पेशाब आने की दिक्कत होती है. दूसरे स्टेज में सीधा लेटने पर सांस फूलना, कई तकियों का सहारा लेना या खांसते हुए उठने के लक्षण दिखाई देते हैं. तीसरे स्टेज में भी यह लक्षण होते हैं और चौथे स्टेज में मरीज बिल्कुल लेटकर सो नहीं पाते, बार-बार रात में दिल की दिक्कत होती है. इस स्थिति में अस्पताल में इलाज या हार्ट ट्रांसप्लांट तक की जरूरत पड़ सकती है. इससे बचने के लिए आप कुछ नियम अपना सकते हैं, जैसे कि ज्यादा तकिए या एडजस्टेबल बेड का इस्तेमाल करें, सोने से पहले ज्यादा पानी न पिएं ताकि बार-बार पेशाब न लगे और नमक कम खाएं, इससे शरीर में पानी कम रुकेगा और दिल पर दबाव घटेगा.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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