बखरी विधानसभा का समीकरण, वामपंथी गढ़ में BJP की पैठ की कोशिश, निर्णायक भूमिका में दलित मत

बिहार विधानसभा चुनाव में बेगूसराय जिले का बखरी (एससी) विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर सियासी मुकाबले के केंद्र में है. गंडक नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अपनी घनी आबादी, उपजाऊ मिट्टी और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है. यहां की बलुई-दोमट मिट्टी धान, गेहूं, मक्का और दालों के उत्पादन के लिए आदर्श मानी जाती है, जबकि दुग्ध उत्पादन और लघु उद्योग स्थानीय लोगों की आय का अहम जरिया हैं.

बखरी विधानसभा की कुल आबादी लगभग 4.83 लाख है, जिसमें करीब 2.95 लाख मतदाता शामिल हैं. इनमें पुरुष मतदाता 1.54 लाख और महिला मतदाता 1.40 लाख हैं, जबकि 9 मतदाता थर्ड जेंडर वर्ग से हैं. यह क्षेत्र एससी आरक्षित है, इसलिए दलित समुदाय के 20 से 25 प्रतिशत वोट इस चुनाव में निर्णायक माने जा रहे हैं.

ग्रामीण इलाकों की बहुलता (करीब 85 प्रतिशत) के कारण यहां की समस्याएं भी मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़ी हैं. हर साल गंडक नदी की बाढ़ हजारों एकड़ फसलों को तबाह कर देती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है और बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन होता है. इसके अलावा सिंचाई, रोजगार और बाढ़ नियंत्रण इस क्षेत्र के स्थायी चुनावी मुद्दे रहे हैं.

राजनीतिक दृष्टि से बखरी विधानसभा का इतिहास दिलचस्प रहा है. 1951 में बने इस निर्वाचन क्षेत्र में अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का दबदबा लंबे समय तक बना रहा. सीपीआई ने यहां 11 बार जीत दर्ज की है, जिसमें 1967 से 1995 तक लगातार आठ बार की जीत शामिल है. शुरुआती दौर में कांग्रेस ने भी 1952, 1957 और 1962 में तीन बार जीत हासिल की थी.

वर्ष 2000 में पहली बार आरजेडी ने वामपंथियों का सिलसिला तोड़ा, लेकिन 2005 के दोनों चुनावों में सीपीआई ने फिर वापसी की. 2010 में बीजेपी ने पहली बार इस क्षेत्र में जीत दर्ज की, जबकि 2015 में राजद ने बाजी मारी. 2020 में महागठबंधन ने यह सीट सीपीआई के हिस्से में छोड़ी और पार्टी उम्मीदवार मनोज कुमार ने बीजेपी को मात्र 777 वोटों से मात दी.

इस बार बीजेपी फिर से वामपंथी गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में है, जबकि सीपीआई अपने जनाधार को बचाए रखने के लिए सक्रिय है. दलित मतदाताओं की भूमिका और ग्रामीण मुद्दों पर कौन ज्यादा प्रभावी रहता है, यह तय करेगा कि बखरी का ऐतिहासिक गढ़ किसके हाथ में जाता है.

We use cookies to improve your experience, analyze traffic, and personalize content. By clicking “Allow All Cookies”, you agree to our use of cookies.

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *