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- N. Raghuraman’s Column Sometimes The Pictures On Your Mobile Phone Have The Power To Write History
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श्रीलंका के किसी भी तीर्थ स्थल पर जाएं, वहां प्रवेश द्वार पर आपको हाथी के दो विशाल दांत दिखेंगे। रविवार को एक ऑटो चालक मुझे ‘गंगारामया मंदिर’ लेकर गया, जो बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध पूजा स्थल है। प्रवेश द्वार पर एक कृत्रिम एशियाई हाथी ‘एलेफस मैक्सिमस मैक्सिमस’ आपका स्वागत करता है। ऊंचा खड़ा वह हाथी बुलंदी से कह रहा है कि ‘हम इस द्वीप की सबसे आइकॉनिक प्रजाति हैं।’
दिलचस्प यह है कि इन लंबे दांतों वाले हाथियों (टस्कर्स) को सबसे उत्कृष्ट माना जाता है, फिर भी वे तेजी से लुप्त हो रहे हैं। ऐसे कई विशालकायों को हम पहले ही खो चुके हैं। मैंने उन लंबे दांतों को छुआ और आसपास के लोगों से पूछा कि ये कितने लंबे हो सकते हैं।
मंदिर में एक ने बताया कि श्रीलंका में अब तक का सबसे लंबा दांत ‘मिलंगोड़ा राजा’ नामक हाथी का था। उसका दांत लगभग 7.5 फीट (2.3 मीटर) लंबा था। जब मैंने पूछा कि वह दांत या उसकी फोटो कहां देखी जा सकती है तो मुझे कोलंबो नेशनल म्यूजियम जाने को कहा गया।
वहां वर्तमान में 40 से अधिक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफरों द्वारा खींची गई टस्कर्स की 75 प्रभावशाली तस्वीरें ‘मैजेस्टिक टस्कर्स’ शीर्षक के तहत प्रदर्शित हैं। इसी सप्ताह शुरू हुई प्रदर्शनी में 1970 से अब तक की टस्कर्स की फोटो प्रदर्शित की गई हैं। ‘वाइल्ड टस्कर्स श्रीलंका’ के बैनर तले यह प्रदर्शनी प्रकृति प्रेमियों ने सामूहिक रूप से आयोजित की है।
प्रख्यात क्रिकेटर से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बने अनिल कुंबले ने एक बार मुझसे कहा था कि ‘वन्यजीव फोटोग्राफर के तौर पर मुझे अक्सर विभिन्न प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने और फोटो खींचने का अवसर मिलता है।’ मैंने उनसे कहा कि कुछ दिखाइए तो उन्होंने अपने मोबाइल में कुछ फोटो दिखाते हुए कहा कि इनमें से अधिकतर उनके घर पर हैं। उनकी इन पंक्तियों ने मुझे प्रदर्शनी देखने के लिए प्रेरित किया।
मैंने जाना कि श्रीलंका में पारंपरिक तौर पर टस्कर्स के नाम राजाओं और योद्धाओं के नाम पर रखे जाते हैं। कुछ को उनके निवास क्षेत्रों या विशिष्ट शारीरिक विशेषताओं, जैसे क्रॉस या छोटे दांतों से पहचाना जाता है। स्थानीय लोग इन पहचानों से उस हाथी को जानते हैं और उससे भावनात्मक रिश्ता बनाते हैं।
यह उनके संरक्षण और सुरक्षा के लिए जन समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण है। मैंने वहां कुछ नया भी सीखा। अफ्रीकी हाथियों में नर और मादा दोनों के दांत होते हैं। इसके विपरीत, एशियाई हाथियों में कुछ नरों में ही दांत होते हैं। एक अनुमान के अनुसार श्रीलंका में 7-8% नरों के ही दांत हैं, जो इन हाथियों को दुर्लभ और कीमती बनाते हैं। यानी उस द्वीप पर अनुमानित 6 हजार जंगली हाथियों में से महज 120 से 150 ही टस्कर होंगे।
जैविक रूप से ‘टस्क’ हाथियों के ऊपरी इनसाइजर दांत होते हैं, जो पूरे जीवन बढ़ते रहते हैं। ये खुदाई करने, छाल उतारने, लकड़ियां हटाने, पेड़ों पर निशान बनाने या प्रतिद्वंद्वियों से बचाव के जरूरी औजार हैं। यहां तक कि ये हाथी अपने किसी एक दांत का प्राकृतिक तौर पर अधिक इस्तेमाल करते हैं, जैसे कोई इंसान अपने दाएं या बाएं हाथ का करता है। इसे मास्टर टस्क कहा जाता है, जो समय के साथ घिस जाता है। मादा हाथियों में कभी टस्क नहीं उगते। कुछ में खूंटी जैसे उभार होते हैं, जिन्हें ‘टशेस’ कहते हैं।
प्रदर्शनी से बाहर आकर मेरी यह धारणा और मजबूत हुई कि फोटोग्राफी में बड़ी ताकत है- खासकर इतिहास लिखने और संरक्षण को प्रोत्साहित करने में। चूंकि हम देख कर ही विश्वास करते हैं, इसलिए ऐसी फोटोग्राफी केवल दर्शकों को अचंभित के लिए ही नहीं है, बल्कि विश्वास दिलाने के लिए भी है कि ऐसी चीजें मौजूद थीं और हम उन्हें अपनी पीढ़ियों के लिए बचाने में विफल रहे।
फंडा यह है कि मोबाइल से खींची तस्वीरों की ताकत समझें। उनमें वो कहानी है, जिसे आपने देखा, अनुभव किया और जिया- ताकि भावी पीढ़ी को बता सकें। अब मोबाइल से जब भी कुछ शूट करें तो सोचें कि कुछ वर्षों बाद यह बच्चों को इतिहास की शिक्षा देने में कितना उपयोगी होगा। याद रखें, हर तस्वीर में ताकत है।

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