पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:इंटरनेट को नकारें नहीं पर उपयोग में सावधानी रखें
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इस समय विश्व-अशांति के जितने भी कारण ढूंढे जाते हैं, उनमें से एक है डिजिटल मीडिया और इसको गति मिली है इंटरनेट से। आज संयोग से अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट दिवस है। दो कंप्यूटरों के बीच पहली बार इलेक्ट्रॉनिक संदेश का आदान-प्रदान हुआ और 1990 तक आते-आते तो क्रांति हो गई।
दुनिया यदि बदली है और बदलाव के साथ यदि अशांत हुई है तो उसमें इंटरनेट का बड़ा योगदान है। लाभ से अधिक हानि हुई। कुछ लोग कहते हैं इंटरनेट से शांति भी प्राप्त हुई, लेकिन यह शांति ट्रम्प के प्रयासों की तरह है। तीन लोगों ने शांति के प्रयास किए थे महाभारत के समय।
विदुर का प्रयास सात्विक था, लेकिन मूर्त रूप नहीं हुआ। भीष्म और द्रोण के प्रयास राजसी थे, वो भी अधूरे रह गए। धृतराष्ट्र और कर्ण के प्रयास तामसिक थे और उनके नतीजे सबने भुगते। इंटरनेट से भी शांति इसी तरह मिलती है कि लगता है शांति मिल रही है, पर होती अशांति है। लेकिन इंटरनेट को नकारा नहीं जाना चाहिए, पर उसके उपयोग में खासी सावधानी जरूर रखी जाए।
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