मनोज जोशी का कॉलम:अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों की यह चौथी कड़ी है
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- Manoj Joshi’s Column: This Is The Fourth Episode Of The US Pakistan Relationship.
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आसियान समिट के दौरान कुआलालम्पुर में 27 अक्टूबर को विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके अमेरिकी समकक्ष मार्को रूबियो की बैठक के बारे में ज्यादा कुछ बाहर नहीं आया है। जयशंकर की बस एक सोशल मीडिया पोस्ट है, जिसमें उन्होंने बैठक में ‘द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय व वैश्विक मसलों’ पर चर्चा होना बताया है। रूबियो ने चुप्पी साध रखी है।
यह ऐसे समय में हुआ है, जब 25 अक्टूबर को रूबियो ने एक साक्षात्कार में पाकिस्तान से अमेरिका के करीबी जुड़ाव का बचाव करते हुए कहा था कि यह भारत से संबंधों की कीमत पर नहीं हो रहा है। कुआलालम्पुर जाने से पहले दोहा में रिपोर्टरों से बातचीत में रूबियो ने कहा कि वे जानते हैं भारत ‘जाहिर तौर पर पाकिस्तान के साथ रहे उसके तनाव’ के कारण चिंतित था।
लेकिन अमेरिका को अपने राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में विभिन्न देशों से जुड़ाव रखना पड़ता है। उन्होंने स्वीकारा कि ‘हमें पाकिस्तान के साथ रणनीतिक संबंध बढ़ाने में अवसर दिखा, लेकिन अमेरिका भारत से रिश्तों की कीमत पर पाकिस्तान के साथ कुछ नहीं कर रहा। ये रिश्ते गहरे, ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण हैं।’
अधिकतर भारतीय सोचते हैं कि पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी रवैए में बदलाव का कारण ऑपरेशन सिंदूर, ट्रम्प का युद्धविराम करवाने का दावा और जून में आसिम मुनीर के साथ हुई उनकी मुलाकात है। लेकिन रूबियो ने खुलासा किया कि अमेरिका ने तो भारत-पाक युद्ध से पहले, ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही पाकिस्तान से रिश्ते बढ़ाने का फैसला कर लिया था।
रूबियो की टिप्पणियां पाकिस्तान और अमेरिका की दोस्ती को समझाती हैं। इसमें अब तक रेयर-अर्थ संवर्धन के लिए समझौते के अलावा ट्रम्प परिवार के क्रिप्टो वेंचर्स में पाकिस्तानी निवेश जैसी डील हो चुकी है। अगस्त में दोनों ने पाकिस्तानी तेल भंडारों के विकास के लिए भी समझौता किया।
जून में मुनीर-ट्रम्प लंच के बाद से ही दोनों देशों के बीच खिचड़ी पक रही है। मुनीर तीन बार अमेरिका हो आए हैं। पिछली बार तो वे शहबाज शरीफ के साथ व्हाइट हाउस पहुंचे थे। अक्टूबर के मध्य में गाजा शांति समिट में भी तमाम वैश्विक नेताओं के बीच ट्रम्प ने सिर्फ शरीफ को ही बोलने के लिए बुलाया।
शरीफ ने भी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रम्प का समर्थन करके मौका भुना लिया। ऐसे में रूबियो की इस बात पर भरोसा करना आसान नहीं कि अमेरिका भारत से संबंधों की कीमत पर पाक से रिश्ते नहीं बना रहा है।
1950 के दशक में जब अमेरिका ने पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति शुरू की थी, तब भी उसने ऐसा ही भरोसा दिलाया था कि ये हथियार भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किए जाएंगे। उस वक्त वे टैंक, तोपें, लड़ाकू विमान भारत के पास मौजूद हर हथियार से उन्नत थे।
पाकिस्तान को लगा वह भारत को मात दे सकता है और उसने 1965 में हमला कर दिया। लेकिन अमेरिका ने पाकिस्तान को सजा देने के बजाय भारत और पाक, दोनों को ही हथियार आपूर्ति प्रतिबंधित कर दी। 1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत को अमेरिकी रक्षात्मक उपकरणों की सप्लाई बहुत कम कर दी गई।
फिर 1980 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ की चढ़ाई के कारण अमेरिका ने पाकिस्तान से अपना गठबंधन फिर ताजा किया और उसे एफ-16 लड़ाकू विमान और एडवांस एयर-टु-एयर मिसाइलों की सप्लाई की। घोषित तौर पर यह भारत के खिलाफ नहीं था, लेकिन चूंकि पाकिस्तान भारत को सबसे बड़ा दुश्मन मानता है तो इन हथियारों से उसकी भारत से लड़ने की क्षमता बढ़ी। इसने 1980 और 1990 के दशक में भारत में अलगाववादी आंदोलनों और आतंकवाद को समर्थन देने के लिए पाकिस्तान का हौसला बढ़ाया।
9/11 के बाद अमेरिका-पाक गठजोड़ का तीसरा चरण शुरू हुआ। अगले एक दशक में अमेरिका ने पाकिस्तान को 18 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी, जिसमें उन्नत एफ-16 और अन्य हथियार शामिल थे। पाक ने अपनी ताकत बढ़ाने और भारत के खिलाफ प्रॉक्सी युद्ध तेज करने के लिए इनका इस्तेमाल किया।
अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने ट्वीट किया था कि अमेरिका ने पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी, लेकिन बदले में सिर्फ ‘झूठ और छल’ ही मिला। सब जानते हैं कि जब अमेरिका तालिबान से लड़ रहा था तो पाकिस्तान ने उसके आतंकवादियों को अपनी जमीन पर पनाह दी थी। लेकिन अब समय बदल गया है और अमेरिका पाकिस्तान से अपने रणनीतिक संबंधों का चौथा चरण शुरू कर रहा है। इसके परिणाम तो पता नहीं, लेकिन इतिहास यदि कुछ सबक देता है तो यह अमेरिका और भारत, दोनों के लिए हितकारी नहीं।
अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने ट्वीट किया था कि अमेरिका ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर दिए, पर बदले में ‘झूठ और छल’ ही मिला। अब समय बदल गया है और अमेरिका पाकिस्तान से संबंधों का चौथा चरण शुरू कर रहा है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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