पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:आज्ञा देने और मानने में विवेक का इस्तेमाल करिए
- Hindi News
- Opinion
- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Use Discretion In Giving And Obeying Orders
-
कॉपी लिंक
आज्ञा देने वाले और मानने वाले, दोनों को लगता है कि आज्ञा नहीं मानी तो अहंकार को चोट लगेगी, मान ली तो भी अहंकार आहत होगा। आज एक बार संस्कारी बच्चे मिल जाएंगे पर आज्ञाकारी बच्चे कम ही मिलते हैं। कोई किसी को सुनना नहीं चाहता। लगता है सब बहरे हो गए हैं। घरों में लोग एक-दूसरे पर जोर से ही बोल रहे हैं। एक वक्त था जब लोग घरों में बड़े-बूढ़ों की आंखें देखकर आज्ञा समझ जाते थे। राम कथा का एक प्रसंग याद रखिए।
दशरथ ने आज्ञा दी कि राम को वनवासी वेश में 14 वर्ष के लिए जाना है। राम ने आज्ञा मान ली। कुछ दिनों बाद दशरथ के मंत्री सुमंत ने कहा कि आपके पिताजी ने मुझे आदेश दिया है कि मैं आपको चार दिन घुमाऊं और वापस ले चलूं- लखनु रामु सिय आनेहु फेरी। राम जिन्होंने पहली आज्ञा मानी थी, दूसरी आज्ञा के लिए तुरंत सुमंत को कहते हैं- पहली आज्ञा मेरे पिता ने धर्म के पालन के लिए दी थी और दूसरी आज्ञा मोह में डूबी हुई है। मुझमें इतना विवेक है कि कौन-सी आज्ञा मानी जाए और कौन-सी नहीं।