एन. रघुरामन का कॉलम:आप ‘अपने रूप’ में ही सबसे ज्यादा दमकते हैं

पिछले रविवार शाम 6 बजे स्वामीमलै में भगवान कार्तिकेय (भगवान गणेशजी के भाई) के दर्शन के बाद मैं उमायलपुरम् की ओर पैदल जा रहा था, जहां अगले दिन एक पारिवारिक कार्यक्रम होना था। चूंकि यह दूरी 4 किलोमीटर से भी कम थी, इसलिए मैंने पैदल ही चलकर रास्ते की शांतिपूर्ण हरीतिमा का आनंद लेने का फैसला किया। आमतौर पर दक्षिण भारत में शाम 6 बजे तक सूरज ढल जाता है और मुझे पूरा विश्वास था कि मैं 6.30 बजे तक अपनी यात्रा पूरी कर लूंगा, क्योंकि तब तक घना अंधेरा छा जाता है। लेकिन कुछ अप्रत्याशित हुआ। अचानक पूरे इलाके में अंधेरा छा गया, मानो किसी ने रंग-बिरंगे खिलौनों से खेलते हुए किसी बच्चे पर एक काला कम्बल डाल दिया हो। और जोरदार बारिश भी शुरू हो गई। आस-पास कोई आश्रय न होने के कारण मैं थोड़ी दूर एक बस स्टैंड तक पैदल गया और इस दौरान आधा भीग गया। मेरा विचार यह था कि अगली बस पकड़कर मैं पांच मिनट में अपने गंतव्य तक पहुंच जाऊंगा। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कांक्रीट का एक लैंप पोस्ट उखड़कर सड़क पर गिर गया और बत्ती गुल हो गई। इसी के साथ मेरी बस यात्रा की योजना भी धरी की धरी रह गई क्योंकि कोई भी बस उस लैंप पोस्ट को पार करके आगे नहीं बढ़ सकती थी। इधर बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। मंदिर पहुंचे मेरे रिश्तेदारों ने मुझे फोन करके पूछा कि मैं कहां रह गया हूं। उन्होंने मुझे बताया कि मंदिर परिसर में भी पानी भर गया है। अभी तो मुझे उसकी कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि मेरे आस-पास बारिश का पानी खेतों में खड़ी धान के पैरों (जड़ों) को धोने के लिए भागे चला जा रहा था। मेरे रिश्तेदारों ने वापसी में मुझे साथ लेने का वादा किया। तभी एक आदमी बस स्टॉप पर आया। वह भीगा हुआ था और एक बड़ा, जीर्ण-शीर्ण बैग लिए हुए था। ‘अन्ना’ (तमिल में बड़ा भाई)- उसने कहा। उसकी आवाज में विनम्रता और आशा थी। जब मैंने मोबाइल स्क्रीन से नजरें उठाईं, तो उसकी मुस्कान देखकर मैं दंग रह गया। एक दांत गायब होने के बावजूद उसके चेहरे से गर्मजोशी झलक रही थी। इसने मेरे आस-पास की ठंड को पिघला दिया। उसने आगे कहा, ‘क्या यहां कोई चाय की दुकान है?’ मैंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता।’ तभी एक गीला कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उसने इतनी जोर से अपने शरीर को हिलाया कि मैं उससे दूर हो गया। लेकिन उस आदमी ने कुछ अलग किया। उसके बैग की बाहरी जेब में एक कपड़ा था। उसने उससे बस स्टैंड की सीमेंट की बेंच का एक छोटा-सा हिस्सा पोंछा और कपड़े को ऐसे फैलाया, जैसे वह उस पर बैठना चाहता हो। लेकिन कुत्ता उस पर कूद पड़ा और अपना चेहरा व शरीर उससे पोंछने लगा, मानो उसे खुद को सुखाने का निमंत्रण दिया गया हो। उस आदमी ने अपने बैग के अंदर से मुड़ी हुई और इस्तेमाल की हुई एल्युमीनियम फॉइल में लिपटे कुछ बन निकाले। इससे मुझे तुरंत एहसास हुआ कि वह गरीब है और दूसरों की दयालुता पर आश्रित है। लेकिन उसकी उदारता ने मेरा दिल जीत लिया। मैंने उससे पूछा, ‘क्या यह तुम्हारा पालतू जानवर है?’ उसने कहा हर आवारा जानवर उसका पालतू है और वह उनके साथ अपनी जगह और खाना बांटने में विश्वास रखता है, क्योंकि उन्हें भी उसके ईश्वर ने ही बनाया है। मुझे लगा उसने बहुत गहरी बात कही है। तभी मेरे रिश्तेदार आ गए। उन्होंने मुझे गाड़ी में बैठने को कहा। मैंने पूछा उनके पास खाने के लिए क्या है। उन्होंने मुझे मंदिर का प्रसाद दिया, जो एक बार के खाने के लिए काफी था। उसे मैंने उस व्यक्ति को दे दिया। हमारी नजरें मिलीं। उसकी आंखों ने मुझे केवल शुक्रिया ही नहीं कहा, बल्कि यह भी कहा कि ‘देखो, क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि अगर अपना खाना ईश्वर की किसी कृति के साथ साझा करोगे, तो बदले में भोजन मिलेगा?’ मैं बस सहमति में मुस्कराया। लेकिन वहां से जाने से पहले उसके हाथों में कुछ नोट थमा दिए, क्योंकि मुझे पता है कि वह उन पैसों से किसी भूखे की भूख भी मिटाएगा। फंडा यह है कि जब आप अपने स्वरूप में स्थित होते हैं, तो आप उस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ होते हैं और फिर आपके पास चाहे जितनी सम्पत्ति न हो, लेकिन आप अपने उसी रूप में सबसे ज्यादा दमकते हैं।

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