अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच सोमवार (20 अक्टूबर) को एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह डील रेयर अर्थ मिनरल्स और क्रिटिकल मिनरल्स से जुड़ी है, जो इलेक्ट्रिक वाहन, जेट इंजन और रक्षा उपकरण बनाने में जरूरी हैं.
व्हाइट हाउस में ट्रंप ने बताया कि यह समझौता चार-पांच महीने की बातचीत के बाद पूरा हुआ. दोनों नेताओं ने व्यापार, रक्षा उपकरण और पनडुब्बी परियोजनाओं पर भी चर्चा की. अल्बानीज़ ने इस समझौते की कुल वैल्यू 8.5 बिलियन डॉलर (करीब 71,000 करोड़ रुपये) बताई. इस डील के तहत अगले छह महीनों में दोनों देश खनन और प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट्स में निवेश करेंगे. साथ ही क्रिटिकल मिनरल्स के लिए न्यूनतम मूल्य (Price Floor) तय किया गया है, जो लंबे समय से पश्चिमी कंपनियों की मांग थी.
ऑस्ट्रेलिया पर भरोसा बढ़ा रहा है अमेरिका
चीन के पास दुनिया के सबसे बड़े रेयर अर्थ रिज़र्व्स हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण खिलाड़ी है. अमेरिका अब अपने QUAD साझेदार ऑस्ट्रेलिया पर भरोसा बढ़ा रहा है ताकि चीन पर निर्भरता कम हो.
इस समझौते का भू-राजनीतिक महत्व भी है. पश्चिमी देश अब चीन पर निर्भरता कम करना चाहते हैं. हाल के महीनों में चीन ने रेयर अर्थ निर्यात नियंत्रण और सख्त कर दिए हैं, जिससे वैश्विक सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ गया. अमेरिका और उसके सहयोगी इसे वैश्विक उद्योगों के लिए खतरा मान रहे हैं.
भारत के लिए क्या है चुनौती?
भारत के लिए यह खबर खास है. अमेरिका अपने QUAD सहयोगी ऑस्ट्रेलिया से मिनरल्स ले रहा है, जबकि भारत अभी भी कई क्षेत्रों में चीन पर निर्भर है. सवाल यह उठता है कि अगर भारत भी अपने हित में चीन से डील करे, तो इसे क्यों ‘रणनीतिक जोखिम’ माना जाए, जबकि अमेरिका यही काम कर रहा है. यह डील अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत करेगी और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदल सकती है. भारत के लिए चुनौती यह है कि वह वैश्विक राजनीति के साथ चले या अपने संसाधनों के हित में कदम उठाए.
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