हरविजय सिंह बाहिया की अद्भुत तस्वीरें
75 वर्षीय वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र हरविजय सिंह बाहिया ने कैमरे में उतारी गिर की गर्जना, समर्पित अपनी ‘शेरनी’ इंदु को
( By Rajeev Saxena ) आगरा। कहते हैं, जंगल बोलते नहीं — वे महसूस होते हैं। उनकी हर सरसराहट, हर गर्जना, हर सन्नाटा एक कहानी कहता है। इसी मौन में छिपे संसार को 75 वर्षीय वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र, उद्यमी और समाजसेवी हरविजय सिंह बाहिया ने अपने कैमरे की नज़रों से जीवंत किया है — अपनी नई कॉफ़ी टेबल बुक ‘लॉर्ड्स ऑफ गिर’ में।
रविवार को होटल क्लार्क शिराज, आगरा में इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ — और साथ ही शुरू हुई उस जंगल की यात्रा, जहाँ हर पत्ती और हर पंजे का निशान जीवन का गीत गाता है।
गिर: भारत की शान, शेरों की शरण
गुजरात का गिर वन, एशियाई शेरों का आख़िरी प्राकृतिक आवास। कभी लुप्त होने की कगार पर पहुँचे ये शेर आज संरक्षण की सफलता की मिसाल हैं।
गिर के पेड़ों की छाँव में शेरनी के शावक खेलते हैं, नदी किनारे मयूर नाचते हैं और रात के सन्नाटे में बब्बर शेर की दहाड़ दूर तक गूँजती है। यही गिर की आत्मा है — और यही आत्मा ‘लॉर्ड्स ऑफ गिर’ के हर पन्ने में सांस लेती है।
हर क्लिक, एक नई कहानी
100 पन्नों और 106 दुर्लभ फोटोग्राफ्स से सजी यह कॉफ़ी टेबल बुक जंगल की उस दुनिया को दिखाती है जो शब्दों में बयान नहीं की जा सकती।
शेरनी की आंखों में झलकती सुरक्षा की चमक, शावकों की मासूम शरारतें, बब्बर शेर की राजसी शांति — हर तस्वीर एक कविता है, हर फ्रेम एक धड़कन।
बाहिया कहते हैं, “गिर का जंगल सिर्फ़ शेरों का घर नहीं, वह जीवन की सबसे जटिल लेकिन सुंदर व्यवस्था है। हर जीव, हर पेड़, हर सन्नाटा वहां अपनी भूमिका निभाता है।”
इंदु को समर्पित ‘जंगल की रानी’
हरविजय सिंह बाहिया ने यह पुस्तक अपनी दिवंगत पत्नी इंदु बाहिया को समर्पित की है — जिन्हें वे अपनी “जिंदगी की शेरनी” कहते हैं।
वे भावुक होकर बताते हैं, “इंदु मेरे जीवन की ताकत थीं। जिस तरह शेरनी अपने परिवार की रक्षा करती है, उन्होंने भी हर संघर्ष में मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। यह किताब उनके नाम मेरी श्रद्धांजलि है।”
विमोचन में गूँजी गिर की कहानी
समारोह के दो सत्रों में विमोचन और परिचर्चा आयोजित हुई। संचालन अंशु खन्ना ने किया।
विशिष्ट अतिथियों में डॉ. दिव्यभानु सिंह चावड़ा, अध्यक्ष – WWF India, और डॉ. एम.के. रंजीत सिंह झाला, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के प्रमुख योगदानकर्ता शामिल रहे।
डॉ. झाला ने कहा — “एशियाई सिंह केवल गिर का राजा नहीं, भारतीय वन्यजीव गौरव का प्रतीक है। ‘लॉर्ड्स ऑफ गिर’ इस गौरव को चित्रों में अमर करती है।”
वहीं डॉ. चावड़ा ने जोड़ा — “हरविजय सिंह बाहिया ने गिर को वैश्विक मानचित्र पर ला खड़ा किया है। उनकी तस्वीरें प्रकृति की धड़कनों को सुनना सिखाती हैं।”
75 की उम्र में जज़्बे की मिसाल
स्पोर्ट्स पर्सन, उद्यमी और पर्यावरण प्रेमी हरविजय बाहिया ने 1980 से अब तक कई हिमालयन कार रैली, डेजर्ट स्टॉर्म रैली जैसी कठिन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है।
उन्होंने “ग्रीन आगरा” अभियान से पौधारोपण को सामाजिक आंदोलन बनाया और ताज लिटरेचर फेस्टिवल से आगरा को साहित्यिक पहचान दी।
आज भी उनके कैमरे में वही जज़्बा है जो उनके रैली कार के इंजन में हुआ करता था — अडिग, साहसी और उद्देश्यपूर्ण।
भविष्य की नई उड़ान
हरविजय बाहिया अब बाघ और चीतों पर आधारित नई कॉफी टेबल बुक्स पर काम कर रहे हैं। अगर वे सफल हुए, तो वे भारत के पहले फोटोग्राफर होंगे जिन्होंने शेर, तेंदुआ, बाघ और चीता — चारों बड़े बिल्लियों पर स्वतंत्र पुस्तकें प्रकाशित की होंगी।
उनकी पिछली बेस्टसेलर ‘रॉकस्टार ऑफ बेरा’ पहले ही राजस्थान के तेंदुओं की दुनिया को लोकप्रिय बना चुकी है।
“जंगल मेरा मंदिर है”
समारोह के अंत में हरविजय बाहिया ने कहा — “जंगल मेरे लिए मंदिर है। वहाँ हर प्राणी, हर ध्वनि ईश्वर की अभिव्यक्ति है। अगर ‘लॉर्ड्स ऑफ गिर’ पढ़ने के बाद कोई व्यक्ति पेड़ काटने से पहले एक पल रुक जाए, तो मेरी यह मेहनत सार्थक हो जाएगी।”