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  • इस राज्य में दिवाली के बाद पुलिस का एक्शन, पटाखे फोड़ने और हुड़दंग करने पर 400 से ज्यादा गिरफ्तार

    इस राज्य में दिवाली के बाद पुलिस का एक्शन, पटाखे फोड़ने और हुड़दंग करने पर 400 से ज्यादा गिरफ्तार

    कोलकाता पुलिस ने दिवाली के एक दिन बाद यानि मंगलवार (21 अक्टूबर, 2025) को अभद्र व्यवहार करने और प्रतिबंधित पटाखे जलाने समेत कानून का उल्लंघन करने के लिए 316 लोगों को गिरफ्तार किया. एक अधिकारी ने बताया कि मंगलवार को छापेमारी के दौरान 180 किलोग्राम से ज्यादा प्रतिबंधित पटाखे और 30 लीटर से ज्यादा अवैध शराब भी जब्त की गई.

    पुलिस ने अभद्र व्यवहार करने के लिए 273 और प्रतिबंधित पटाखे जलाने के लिए 43 लोगों को गिरफ्तार किया. उन्होंने बताया कि कोलकाता यातायात पुलिस ने मंगलवार को विभिन्न अपराधों के लिए 366 लोगों के चालान काटे.

    दिवाली के दूसरे दिन शहर में कुल इतने मामले

    वहीं कोलकाता पुलिस ने दिवाली के बाद दूसरे दिन हुए जश्न के दौरान विभिन्न कानूनों के उल्लंघन करने के आरोप में 153 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें अनुचित व्यवहार और प्रतिबंधित आतिशबाजी छोड़ना शामिल है. गुरुवार (23 अक्टूबर, 2025) को एक अधिकारी ने ये जानकारी दी.

    बुधवार को की गई कुल गिरफ्तारियों में से 146 लोगों को अभद्र व्यवहार के लिए गिरफ्तार किया गया, जबकि सात लोगों को प्रतिबंधित पटाखे फोड़ने के लिए गिरफ्तार किया गया. अधिकारी ने बताया कि जुए से संबंधित किसी भी अपराध के तहत कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. साथ ही पुलिस ने इस दौरान 383 यातायात अभियोग भी शुरू किए.

    पुलिस ने आतिशबाजी सामग्री किया जब्त

    इस अभियान के दौरान, पुलिस अधिकारियों ने 16.95 किलोग्राम प्रतिबंधित आतिशबाजी सामग्री और 14.4 लीटर अवैध शराब भी जब्त की. अधिकारी ने बताया कि यातायात उल्लंघन मामलों में 85 मामले बिना हेलमेट के वाहन चलाने के हैं. साथ ही 37 मामले बिना हेलमेट के पीछे बैठने, 73 लापरवाही से वाहन चलाने और 64 शराब पीकर वाहन चलाने के मामले थे. 124 ऐसे मामले हैं जो ‘अन्य’ श्रेणी के अपराधों में शामिल थे.

    ये भी पढ़ें:- महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं दिखी राहुल गांधी की तस्वीर, भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कसा तंज, कहा – ‘ये कौन सा गठबंधन…’

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  • बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को बताया CM फेस, अब NDA ने भी साफ कर दी तस्वीर

    बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को बताया CM फेस, अब NDA ने भी साफ कर दी तस्वीर

    महागठबंधन की ओर से गुरुवार (23 अक्टूबर, 2025) को साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी घोषणा कर दी गई कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे. इस दौरान कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने एनडीए से भी सवाल पूछ दिया कि आप बताएं कि आपका नेता कौन होगा. इस पर बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने प्रतिक्रिया दी है.

    शाहनवज ने कहा, “एनडीए का चेहरा क्या होगा… अमित शाह जी ऐलान कर चुके हैं कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेंगे, जीतेंगे और सरकार बनाएंगे. इसके बाद और कोई घोषणा की क्या जरूरत है? जब एक बार हमारे जो बड़े नेता हैं उन्होंने ऐलान कर दिया कि हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ रहे हैं, उनके काम के आधार पर 20 साल में जो उन्होंने किया है, जो केंद्र सरकार ने किया है, विकास के मुद्दे पर मैदान में जाएंगे और जीतेंगे.”

    इससे पहले शाहनवाज हुसैन ने कहा, “महागठबंधन ने महाभूल कर ली है. एमवाई समीकरण वाली पार्टी का मतलब अब मुस्लिम-यादव नहीं है, बल्कि मुकेश सहनी और तेजस्वी यादव हो गया है. उनका जो वोट बैंक था उनसे नाराज हो गया है. उनको कुछ मिलने वाला नहीं है. ये लोग सिर्फ बीजेपी का डर दिखाकर मुस्लिम समाज से वोट लेना चाहते हैं. वो लोग डरेंगे नहीं. हम लोग सबका साथ सबका विकास सबके विश्वास के रास्ते पर नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ने जा रहे हैं. महागठबंधन में दरार है.”

    #WATCH तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, “महागठबंधन ने ‘महाभूल’ कर दी है। उनका MY समीकरण अब ‘मुस्लिम-यादव’ नहीं बल्कि ‘मुकेश सहनी-तेजस्वी यादव’ हो गया है। उनका वोट बैंक अब उनसे नाराज हो गया है… pic.twitter.com/HxTppxLKLB

    दूसरी तरफ बीजेपी नेता ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा, “लालू यादव और तेजस्वी यादव के सामने कांग्रेस ने घुटना टेक दिया है. कांग्रेस बहुत डींग हांक रही थी कि मख्यमंत्री का उम्मीदवार हम बताएंगे नहीं… बाद में तय होगा, लेकिन कांग्रेस पार्टी जिसका कोई वजूद नहीं है, उसने लास्ट में लालू यादव के दरवाजे पर जाकर घुटना टेक दिया. उनके कदमों में गिरकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया है, लेकिन आएगा एनडीए, जीतेगा एनडीए, सरकार बनाएगा एनडीए.”

    यह भी पढ़ें- बिहार चुनाव 2025: महागठबंधन के CM फेस होंगे तेजस्वी यादव, अशोक गहलोत ने किया ऐलान

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  • Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi: अमेरिका जाने से पहले गायब होगा तुलसी का पासपोर्ट, परिधि को रंगे हाथ पकड़ेगी शोभा

    Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi: अमेरिका जाने से पहले गायब होगा तुलसी का पासपोर्ट, परिधि को रंगे हाथ पकड़ेगी शोभा

    स्मृति ईरानी के शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. अभी तक आपने देखा कि तुलसी अमेरिका जाने की तैयारी कर रही है. लेकिन, नॉयना ने सोच लिया है कि वो किसी भी हाल में तुलसी को मिहिर के संग अमेरिका नहीं जाने देगी.

    परिधि भी अपनी मां के लिए सिरदर्द बन चुकी है. शो में अब तक देखने को मिला कि तुलसी बिल गेट्स के बारे में जानती है.ऋतिक अपनी मां को इस बारे में बताता है कि बिल गेट्स इतने अमीर होकर भी महिलाओं की मदद कर रहे हैं. इसी बीच शो की कहानी में बड़ी धमाका देखने को मिलेगा.

    तुलसी का पासपोर्ट होगा चोरी

    तुलसी इधर अमेरिका जाने की तैयारी कर रही होती है. लेकिन, उसका पासपोर्ट गायब हो जाता है. उधर, मिहिर पर नॉयना अकेले आने का प्रेशर बनाती है. वो कहती है कि तुम्हें पता है ना ये इवेंट कितना जरूरी है. जल्द ही पता चलने वाला है कि परिधि ने तुलसी के पासपोर्ट को चुरा लिया है.

    शोभा को होगा परिधि पर शक

    नॉयना को फोन कर परिधि बताती है कि उसने तुलसी का पासपोर्ट गायब कर दिया है. इधर वृंदा अपनी शादी को लेकर काफी अफसोस करने वाली है. अंगद को भी वृंदा की बहुत याद आने वाली है. इसी बीच शोभा को शक होने वाला है कि परिधि ने ही तुलसी के पासपोर्ट को गायब किया है.

    हालांकि, शोभा के ढूंढने के बाद भी उसे पासपोर्ट नहीं मिलता है. लेकिन, इसके बाद भी नॉयना का प्लान फेल होने वाला है. तलुसी जल्द ही वीडियो कॉल के जरिए इस इवेंट का हिस्सा बनेगी. इस दौरान बिल गेट्स से तुलसी बात करने वाली है.

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  • Saudi Arabia Kafala System: सऊदी अरब के इस बड़े फैसले से 25 लाख भारतीयों को मिलेगी राहत, जानें क्या है और कैसे फायदे का सौदा

    Saudi Arabia Kafala System: सऊदी अरब के इस बड़े फैसले से 25 लाख भारतीयों को मिलेगी राहत, जानें क्या है और कैसे फायदे का सौदा

    सऊदी अरब ने जून 2025 में अपने इतिहास का सबसे मानवीय फैसला लिया है. सरकार ने आधिकारिक रूप से कफाला (प्रायोजन) व्यवस्था को समाप्त कर दिया, जो दशकों से प्रवासी कामगारों के लिए एक बोझ साबित हो रही थी. यह कदम क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की विजन 2030 नीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य है देश की अर्थव्यवस्था को तेल पर निर्भरता से मुक्त करना और श्रम बाजार को आधुनिक बनाना.

    इस फैसले से सीधे तौर पर लगभग 1.34 करोड़ विदेशी कामगारों को राहत मिलेगी, जिनमें करीब 25 लाख भारतीय भी शामिल हैं. कफाला सिस्टम खाड़ी देशों में लंबे समय से लागू था. इसके तहत किसी भी विदेशी कर्मचारी को देश में काम करने के लिए एक स्थानीय स्पॉन्सर यानी नियोक्ता की अनुमति जरूरी होती थी. नियोक्ता न सिर्फ उस कर्मचारी का वीजा और रेजिडेंसी परमिट (इकामा) नियंत्रित करता था, बल्कि नौकरी बदलने या देश छोड़ने का अधिकार भी उसके हाथों में होता था. यह सिस्टम धीरे-धीरे शोषण का औजार बन गई. कई नियोक्ता कर्मचारियों के पासपोर्ट जब्त कर लेते, वेतन रोक देते और उन्हें मजबूरन काम करवाते थे. अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस व्यवस्था को आधुनिक गुलामी जैसा बताया था.

    नई श्रम नीति में क्या बदला है
    सऊदी अरब ने जो नया कानून लागू किया है, वह पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी सिस्टम पर आधारित है. अब कामगारों को अपने नियोक्ता की अनुमति के बिना नौकरी बदलने की आजादी होगी, बशर्ते वे अनुबंध पूरा कर चुके हों या उचित नोटिस दे चुके हों. कर्मचारियों को देश छोड़ने या वापस लौटने के लिए एग्ज़िट परमिट की भी ज़रूरत नहीं रहेगी. सभी प्रक्रियाएं अब ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से होंगी, जिससे किसी भी प्रकार का मनमाना व्यवहार रोका जा सकेगा. यह बदलाव सऊदी अरब को एक आधुनिक, मानवाधिकार समर्थक और निवेशक-हितैषी देश के रूप में पेश करता है.

    भारतीय प्रवासियों के लिए बड़ा राहत का फैसला
    सऊदी अरब में काम करने वाले भारतीयों के लिए यह सुधार जीवन बदलने वाला साबित हो सकता है.अब कोई भी मजदूर अगर खराब व्यवहार या अनुचित वेतन नीति का सामना करता है,तो वह बिना डर के दूसरी नौकरी खोज सकता है.पहले की तरह पासपोर्ट ज़ब्त करना या बाहर जाने की अनुमति रोकना अब अपराध माना जाएगा.इससे भारतीय प्रवासियों को बेहतर सुरक्षा, न्यायपूर्ण कार्य माहौल और उचित वेतन अवसर मिलेंगे.यह सुधार न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता बढ़ाएगा, बल्कि कंपनियों को भी अधिक प्रतिस्पर्धी बनने के लिए प्रेरित करेगा.

    क्यों जरूरी था यह सुधार
    सऊदी अरब का यह कदम केवल श्रम नीति नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक संदेश भी है.देश अब अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और वैश्विक संस्थानों को यह दिखाना चाहता है कि वह मानवाधिकारों और पारदर्शिता के मानकों को अपनाने के लिए गंभीर है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) वर्षों से कफाला सिस्टम को खत्म करने की मांग कर रहा था.अब यह बदलाव सऊदी अरब की छवि को वैश्विक स्तर पर मजबूत करेगा और विदेशी प्रतिभाओं को देश की अर्थव्यवस्था में भागीदारी के लिए आकर्षित करेगा.

    ये भी पढ़ें: Pak General On India: भारत की ताकत देख कांप गया पाकिस्तान! PAK जनरल ने कहा-‘हम अकेले नहीं निपट सकते’

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  • Pak General On India: भारत की ताकत देख कांप गया पाकिस्तान! PAK जनरल ने कहा-'हम अकेले नहीं निपट सकते'

    Pak General On India: भारत की ताकत देख कांप गया पाकिस्तान! PAK जनरल ने कहा-'हम अकेले नहीं निपट सकते'

    भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से जारी तनाव का मूल केवल सीमा विवाद नहीं, बल्कि आतंकवाद का मुद्दा है. भारत बार-बार यह दोहराता रहा है कि जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवादी संगठनों को पनाह देता रहेगा, तब तक किसी भी तरह के सामान्य संबंध संभव नहीं हैं. मई 2025 में भारतीय सेना की ओर से चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर इसी नीति की मिसाल था. यह कार्रवाई पहलगाम के धार्मिक स्थलों पर हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई थी. 

    भारत ने इस ऑपरेशन सिंदूर के जरिए साफ संदेश दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति ज़ीरो टॉलरेंस पर आधारित है. पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इस कदम को राजनीतिक कदम बताने की कोशिश की, लेकिन उसी वक्त उसके नेता आतंकवादियों के अंतिम संस्कारों में शामिल होते दिखे, जिससे उसका दोहरा रवैया एक बार फिर उजागर हो गया.

    Pakistani General Sahir Shamshad Mirza:

    Indian military is politicized and Indian polity is militarized, creating asymmetries stressing Pakistan’s strategic hand.

    India, though an important global south country, cherishes hegemonism and expansionism, defies UN resolutions and… pic.twitter.com/aArUCwhjs4

    पाकिस्तान की पुरानी रणनीति

    हाल ही में इस्लामाबाद में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पाकिस्तानी जनरल साहिर शमशाद मिर्जा ने बयान दिया कि भारत और पाकिस्तान के विवादों को सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश या अंतरराष्ट्रीय संस्था की मध्यस्थता आवश्यक है. यह बयान पाकिस्तान की वही पुरानी सोच दर्शाता है, जिसमें हर मसले पर बाहरी ताकतों से सहारा लेने की मानसिकता झलकती है. भारत ने इस पर स्पष्ट कहा कि भारत और पाकिस्तान के सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं. भारत का यह रुख 1972 के शिमला समझौते और 1999 के लाहौर घोषणापत्र पर आधारित है, जहां दोनों देशों ने आपसी संवाद के जरिए ही विवाद सुलझाने का वादा किया था.

    पाकिस्तान की कूटनीतिक उलझन और विरोधाभास

    जनरल मिर्जा ने अपने भाषण में भारत को साम्राज्यवादी और प्रभुत्ववादी देश कहा, लेकिन उस बीच में यह भी स्वीकार किया कि भारत आज दुनिया की एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति (Major Global Power) है. उन्होंने आरोप लगाया कि भारत संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों की अनदेखी करता है और मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है. असल में यह बयान पाकिस्तान की कूटनीतिक निराशा और हीन भावना को दर्शाता है. भारत को ट्रोजन हॉर्स कहने वाला पाकिस्तान यह भूल जाता है कि उसकी अपनी पहचान अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आतंकवाद समर्थक देश की बन चुकी है.

    भारत की सेना का राजनीतिकरण पाकिस्तान का आत्मविरोध

    जनरल मिर्जा ने अपने भाषण में भारत की सेना पर राजनीतिक प्रभाव में काम करने का आरोप लगाया. हालांकि, उनका यह बयान पाकिस्तान की वास्तविक स्थिति का मज़ाक उड़ाने जैसा है, क्योंकि पाकिस्तान वही देश है, जहां सेना राजनीति और शासन दोनों को नियंत्रित करती है. वहां लोकतांत्रिक सरकारों को कई बार तख्तापलट (Coup) के जरिए गिराया गया और इमरान खान, नवाज शरीफ जैसे निर्वाचित नेता को सेना की इच्छा के खिलाफ जाने पर जेल भेज दिया गया.

    भारत की वैश्विक स्थिति और पाकिस्तान की बढ़ती बेचैनी

    आज भारत न सिर्फ एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है, बल्कि G-20, ब्रिक्स, और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर सक्रिय भूमिका निभा रहा है. भारत को अब एक वैश्विक नीति-निर्माता के रूप में देखा जाता है, जो ग्लोबल साउथ के हितों की आवाज बन चुका है. पाकिस्तान की चिंता यह है कि भारत अब केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा देश बन गया है, जिसकी बात दुनिया सुनती है. यही कारण है कि पाकिस्तान बार-बार तीसरे पक्ष का मुद्दा उठाकर अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति बटोरने की कोशिश करता है.

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  • छठ पूजा पर कैसे सजाएं घर? ट्रेंड में ये छठ थीम डेकोरेशन आइडिया

    छठ पूजा पर कैसे सजाएं घर? ट्रेंड में ये छठ थीम डेकोरेशन आइडिया

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  • IND vs AUS 2nd ODI: करो या मरो की जंग, आज ऑस्ट्रेलिया से भिड़ेगा भारत, रोहित-विराट पर होंगी निगाहें, जाने मैच से जुड़ी हर जानकारी

    IND vs AUS 2nd ODI: करो या मरो की जंग, आज ऑस्ट्रेलिया से भिड़ेगा भारत, रोहित-विराट पर होंगी निगाहें, जाने मैच से जुड़ी हर जानकारी

    IND vs AUS 2nd ODI: भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच तीन मैचों की वनडे सीरीज का दूसरा मुकाबला आज एडिलेड ओवल में खेला जाएगा. पहले मैच में हार के बाद यह मुकाबला टीम इंडिया के लिए करो या मरो जैसा है. अगर भारत यह मैच हारता है, तो सीरीज ऑस्ट्रेलिया के नाम हो जाएगी. वहीं, जीत मिलने पर टीम इंडिया सीरीज में बराबरी कर लेगी.

    इस मैच में सभी की निगाहें फिर से भारत के दो दिग्गज बल्लेबाजों रोहित शर्मा और विराट कोहली पर होंगी, जिनसे इस बार बड़ी पारी की उम्मीद है.

    रोहित पर दबाव, नेट्स में बहाया पसीना

    आईपीएल के बाद मैदान पर लौटे रोहित शर्मा ने पहले वनडे में कुछ संघर्ष जरूर किया, लेकिन विकेटों के बीच उनकी दौड़ और फिटनेस देखकर लगा कि वह अपने पुराने रिद्म में लौट रहे हैं. टीम की हार के बावजूद नेट्स में उनका आत्मविश्वास कायम दिखा.

    एडिलेड में नेट प्रैक्टिस के दौरान रोहित बाकी खिलाड़ियों से करीब 45 मिनट पहले मैदान पर पहुंच गए. उन्होंने कोच गौतम गंभीर की मौजूदगी में लंबे समय तक बल्लेबाजी की. गंभीर ने रोहित को गीले नेट पर प्रैक्टिस करने से रोका ताकि कोई चोट का खतरा न रहे. इसके बाद हिटमैन ने दूसरे नेट पर जमकर स्ट्रोक्स लगाए.

    विराट कोहली ने लिया आराम

    दूसरी ओर, विराट कोहली ने मंगलवार को लंबा अभ्यास किया था, इसलिए बुधवार को उन्होंने आराम किया. दोनों सीनियर खिलाड़ी इस मैच में टीम के लिए बड़ी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हैं. वहीं युवा बल्लेबाज यशस्वी जायसवाल को एक बार फिर बेंच पर बैठना पड़ सकता है, जिससे रोहित पर अच्छे प्रदर्शन का दबाव और बढ़ गया है.

    टीम कॉम्बिनेशन को लेकर पेचीदगी

    हार्दिक पंड्या की गैरमौजूदगी ने टीम बैलेंस को थोड़ा अस्थिर कर दिया है. कोचिंग स्टाफ अब तक यह तय नहीं कर पाया है कि वॉशिंगटन सुंदर और नितीश रेड्डी की जोड़ी नंबर 8 तक बल्लेबाजी को मजबूत बनाएगी या नही. कुलदीप यादव को फिर से बेंच पर बैठना पड़ सकता है क्योंकि एडिलेड की छोटी बाउंड्री पर स्पिनरों के लिए मुश्किल हालात होंगे.

    ऑस्ट्रेलिया की वापसी मजबूत

    ऑस्ट्रेलियाई टीम में भी दो अहम बदलाव हुए हैं. स्पिनर एडम जांपा अपने बच्चे के जन्म के बाद टीम में शामिल हो गए हैं. विकेटकीपर बल्लेबाज एलेक्स कैरी की भी वापसी हो गई है. पिछले मैच में शानदार प्रदर्शन करने वाले बाएं हाथ के स्पिनर मैट कुहनेमैन को बाहर कर दिया गया है.

    मौसम और पिच रिपोर्ट

    एडिलेड में पिछले दो दिनों से बारिश हुई थी, लेकिन ग्राउंड स्टाफ ने पिच को सुखाने के लिए यूवी लाइट्स का प्रयोग किया है. मैच के दिन बारिश की संभावना नही है, हालांकि आसमान में हल्के बादल रहेंगे और ठंडी हवाएं चलेंगी. एडिलेड ओवल की छोटी बाउंड्री बल्लेबाजों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.

    अगर भारत को सीरीज में वापसी करनी है तो आज का दिन रो-को शो यानी रोहित-विराट कॉम्बो पर ही टिका है. दोनों का बल्ला अगर चला, तो ऑस्ट्रेलिया के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. 

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  • बखरी विधानसभा का समीकरण, वामपंथी गढ़ में BJP की पैठ की कोशिश, निर्णायक भूमिका में दलित मत

    बखरी विधानसभा का समीकरण, वामपंथी गढ़ में BJP की पैठ की कोशिश, निर्णायक भूमिका में दलित मत

    बिहार विधानसभा चुनाव में बेगूसराय जिले का बखरी (एससी) विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर सियासी मुकाबले के केंद्र में है. गंडक नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अपनी घनी आबादी, उपजाऊ मिट्टी और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है. यहां की बलुई-दोमट मिट्टी धान, गेहूं, मक्का और दालों के उत्पादन के लिए आदर्श मानी जाती है, जबकि दुग्ध उत्पादन और लघु उद्योग स्थानीय लोगों की आय का अहम जरिया हैं.

    बखरी विधानसभा की कुल आबादी लगभग 4.83 लाख है, जिसमें करीब 2.95 लाख मतदाता शामिल हैं. इनमें पुरुष मतदाता 1.54 लाख और महिला मतदाता 1.40 लाख हैं, जबकि 9 मतदाता थर्ड जेंडर वर्ग से हैं. यह क्षेत्र एससी आरक्षित है, इसलिए दलित समुदाय के 20 से 25 प्रतिशत वोट इस चुनाव में निर्णायक माने जा रहे हैं.

    ग्रामीण इलाकों की बहुलता (करीब 85 प्रतिशत) के कारण यहां की समस्याएं भी मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़ी हैं. हर साल गंडक नदी की बाढ़ हजारों एकड़ फसलों को तबाह कर देती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है और बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन होता है. इसके अलावा सिंचाई, रोजगार और बाढ़ नियंत्रण इस क्षेत्र के स्थायी चुनावी मुद्दे रहे हैं.

    राजनीतिक दृष्टि से बखरी विधानसभा का इतिहास दिलचस्प रहा है. 1951 में बने इस निर्वाचन क्षेत्र में अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का दबदबा लंबे समय तक बना रहा. सीपीआई ने यहां 11 बार जीत दर्ज की है, जिसमें 1967 से 1995 तक लगातार आठ बार की जीत शामिल है. शुरुआती दौर में कांग्रेस ने भी 1952, 1957 और 1962 में तीन बार जीत हासिल की थी.

    वर्ष 2000 में पहली बार आरजेडी ने वामपंथियों का सिलसिला तोड़ा, लेकिन 2005 के दोनों चुनावों में सीपीआई ने फिर वापसी की. 2010 में बीजेपी ने पहली बार इस क्षेत्र में जीत दर्ज की, जबकि 2015 में राजद ने बाजी मारी. 2020 में महागठबंधन ने यह सीट सीपीआई के हिस्से में छोड़ी और पार्टी उम्मीदवार मनोज कुमार ने बीजेपी को मात्र 777 वोटों से मात दी.

    इस बार बीजेपी फिर से वामपंथी गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में है, जबकि सीपीआई अपने जनाधार को बचाए रखने के लिए सक्रिय है. दलित मतदाताओं की भूमिका और ग्रामीण मुद्दों पर कौन ज्यादा प्रभावी रहता है, यह तय करेगा कि बखरी का ऐतिहासिक गढ़ किसके हाथ में जाता है.

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  • मुस्तफा सुलेमान का कॉलम:हमें समझना होगा कि एआई किसी "वास्तविक' मनुष्य जैसा नहीं है

    मुस्तफा सुलेमान का कॉलम:हमें समझना होगा कि एआई किसी "वास्तविक' मनुष्य जैसा नहीं है

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    • Opinion
    • Mustafa Suleiman’s Column We Must Understand That AI Is Not Like A “real” Human

    1 घंटे पहले
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    मुस्तफा सुलेमान माइक्रोसॉफ्ट एआई के सीईओ

    मेरे जीवन का लक्ष्य एक ऐसे सुरक्षित और लाभकारी एआई का निर्माण करना रहा है, जो दुनिया को बेहतर बनाए। लेकिन हाल के दिनों में, मैं इस बात को लेकर चिंतित होता रहा हूं कि लोग एआई को एक सचेत (कॉन्शस) इकाई के रूप में इतनी दृढ़ता से मानने लगे हैं कि जल्द ही वे एआई अधिकारों और यहां तक कि नागरिकता की भी वकालत करने लगेंगे! यह एक खतरनाक मोड़ होगा। हमें इससे बचना होगा। हमें याद रखना होगा कि एआई हम मनुष्यों की मदद करने के लिए है, इसलिए नहीं है कि वो हम जैसा ही बन जाए।

    इस संदर्भ में, इस पर बहस करना कि क्या एआई वास्तव में कॉन्शस हो सकता है, खुद को मूल विषय से भटकाना होगा। निकट भविष्य में जो चीज मायने रखती है, वो है चेतना का भ्रम। हम पहले से ही उस “सी​मिंगली कॉन्शस एआई’ (एससीएआई) के करीब पहुंच रहे हैं, जो कि चेतना की पर्याप्त रूप से नकल कर सकता है।

    एक एससीएआई भाषा का धाराप्रवाह उपयोग करने में सक्षम होगा और वह प्रेरक और भावनात्मक प्रतिक्रिया देने वाले व्यक्तित्व का भी प्रदर्शन करेगा। उसकी याददाश्त बहुत लंबी और सटीक होगी, जो किसी में भी स्वयं के एक अनवरत बोध को बढ़ावा दे सकती है।

    वह इस क्षमता का उपयोग व्यक्तिपरक अनुभवों (अतीत की बातचीत और यादों का संदर्भ देकर) का दावा करने के लिए कर सकता है। इन मॉडलों के भीतर जटिल रिवॉर्ड फंक्शन आंतरिक प्रेरणा का अनुकरण करेंगे, और उनका उन्नत लक्ष्य-निर्धारण और योजनाएं बनाने की क्षमता हमारी इस भावना को मजबूत करेगी कि एआई किसी वास्तविक मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहा है।

    एआई में ये क्षमताएं या तो पहले से ही मौजूद हैं या जल्द ही आने ही वाली हैं। हमें यह समझकर कि ऐसी प्रणालियां जल्द ही सम्भव होंगी, इनके निहितार्थों पर विचार करना शुरू करना होगा और एआई की मायावी-चेतना के विरुद्ध एक मानक स्थापित करना होगा।

    कई लोगों को एआई के साथ बातचीत करना पहले ही एक समृद्ध और प्रामाणिक अनुभव लगने लगा है। इससे जुड़ी मनोविकृतियां भी सामने आ रही हैं। लोग एआई की बातों को दैवीय-सत्य की तरह सही मानने लगे हैं। चेतना के विज्ञान पर काम करने वाले लोग मुझे बताते हैं कि उनके पास ऐसे लोगों के ढेरों प्रश्न आने लगे हैं, जो जानना चाहते हैं कि क्या उनका एआई कॉन्शस है? और क्या उसके प्रेम में पड़ जाना ठीक होगा?

    भले ही यह कथित चेतना “वास्तविक’ न हो (हालांकि यह एक ऐसा विषय है, जिस पर अंतहीन बहस छिड़ सकती है), लेकिन इसका सामाजिक प्रभाव तो निश्चित रूप से वास्तविक होगा। चेतना हमारी पहचान की भावना और समाज में नैतिक व कानूनी अधिकारों की हमारी समझ से गहराई से जुड़ी हुई है।

    अगर कुछ लोग एससीएआई विकसित करना शुरू कर देते हैं, और अगर ये प्रणालियां लोगों को यह विश्वास दिला देती हैं कि मनुष्यों की तरह उन्हें भी पीड़ा होती है या उन्हें यह अधिकार है कि उन्हें स्विच-ऑफ न किया जाए, तो उनके समर्थक मनुष्य उनकी सुरक्षा के लिए पैरवी करने लगेंगे। पहचान और अधिकारों को लेकर पहले ही ध्रुवीकृत तर्कों से घिरी दुनिया में हम एआई-अधिकारों के पक्ष और विपक्ष के बीच विभाजन की एक नई धुरी जोड़ देंगे।

    एआई के कष्ट झेलने में सक्षम होने के दावों का खंडन करना मुश्किल होगा, खासतौर पर वर्तमान के हमारे विज्ञान की सीमाओं को देखते हुए। कुछ शिक्षाविद पहले ही “मॉडल वेलफेयर’ के विचार पर सोचते हुए तर्क दे रहे हैं कि हमारा कर्तव्य है कि हम उन “बीइंग्स’ के प्रति भी नैतिकता के अपने विचार को बढ़ाएं, जिनके “कॉन्शस’ होने की नगण्य ही सही, किन्तु संभावना है।

    लेकिन इस सिद्धांत को लागू करना जल्दबाजी भरा और खतरनाक दोनों होगा। यह लोगों के भ्रमों को और बढ़ाएगा और उनकी मनोवैज्ञानिक कमजोरियों का फायदा उठाएगा, साथ ही अधिकार-धारकों की एक नई विशाल श्रेणी बनाकर अधिकारों के मौजूदा संघर्षों को और जटिल बना देगा। फिलहाल तो हमारा पूरा ध्यान मनुष्यों, पशुओं और प्राकृतिक पर्यावरण के कल्याण और अधिकारों की रक्षा पर ही होना चाहिए।

    (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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