तमिलनाडु के करूर में एक रैली में भगदड़ के बाद 41 लोगों की मौत के बाद सुपर स्टार विजय के दोस्त आधव अर्जुन ने सोशल मीडिया में लिखा कि दुष्ट शासक के अधीन कानून भी दुष्ट हो जाते हैं। उन्होंने श्रीलंका और नेपाल की तर्ज पर जेन-जी से क्रांति और परिवर्तन का आह्वान किया। लेकिन रोड-शो के नाम पर सड़कों पर अराजकता फैलाकर लोगों को मौत के मुंह में डालने वालों से व्यवस्था-परिवर्तन की उम्मीद कैसे की जा सकती है? इससे जुड़े 5 मसलों पर चर्चा जरूरी है। 1. मुद्दे को भटकाना : बेंगलुरु में आरसीबी के विजय समारोह, दिल्ली रेलवे स्टेशन और अब करूर में भीड़ की भगदड़ जैसे सभी मामलों में जांच समिति, बारीक बहस और नए कानून के नाम पर मुद्दे को भटकाकर संविधान की समानता का माखौल उड़ाया जाता है। टीवीके पार्टी की रैलियों में पहले भी 3 लोगों की मौत हुई थी। अब 41 निरीह लोगों की मौत की कानूनी जवाबदेही लेने के बजाय सीबीआई जांच के नाम पर अदालतों में मुकदमों का खेल हो रहा है। भीड़ प्रबंधन के लिए एनडीएमए और बीपीआरडी की 2020 और 2025 में जारी दो गाइडलाइंस हैं। इसके बावजूद तमिलनाडु में नई एसओपी की बेतुकी मांग हो रही है। सरकारी संसाधन, पुलिस और अदालतों के दुरुपयोग के बाद लम्बित मुकदमों और जेलों में भीड़ के मर्ज पर हमारा रुदन कितना सही है? 2. रोड-शो : बाइक रैलियों और रोड-शो से बड़े पैमाने पर प्रदूषण बढ़ता है। सभास्थल पर पीने का पानी, टॉयलेट्स, पार्किंग और आपात रास्तों की व्यवस्था होनी चाहिए। इसलिए सड़कों पर रैली नहीं हो सकती। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार रोड-शो छुट्टियों के दिन होना चाहिए, जिससे आम जनता को असुविधा नहीं हो। स्कूल, अस्पताल, ब्लड-बैंक और जरूरी सुविधाओं के इलाकों में रोड-शो नहीं हो सकता। काफिले में दस से ज्यादा गाड़ियां नहीं हों और उनका पूर्व विवरण अधिकारियों को देना जरूरी है। रोड-शो के दौरान आधी सड़क में यातायात सुचारु रूप से जारी रहना चाहिए। एम्बुलेंस का रास्ता रोकने और मरीजों की जान जोखिम में डालकर रोड शो करने वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। 3. जवाबदेही : कफ सिरप से हुई मौतों के बाद दवा फैक्ट्री और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई के बजाय डॉक्टरों पर दोषारोपण से मामले को भ्रमित करने का प्रयास हो रहा है। सीवर लाइन में हो रही मौतों पर नगर निगम की जवाबदेही तय करने के बजाए ठेकेदार के खिलाफ मुकदमे से लीपापोती हो जाती है। साल 2024 में 8 करोड़ ट्रैफिक चालान के नाम पर आम जनता से 12632 करोड़ वसूले गए। दूसरी तरफ सुपरस्टार विजय को बचाने के लिए गाड़ी के ड्राइवर के खिलाफ कमजोर धाराओं में एफआईआर भर ही दर्ज की गई है। 4. मुआवजा : एक फिल्म के लिए सैकड़ों करोड़ की फीस लेने वाले देश के दूसरे सबसे महंगे स्टार विजय ने हर मृतक को 20 लाख का मुआवजा देकर कानूनी जवाबदेही से छुटकारा पाने का प्रयास किया है। नए मोटर वाहन कानून में सख्त जुर्माने के प्रावधान के बावजूद 2023 में सड़क दुर्घटनाओं में 4.44 लाख लोगों की मौत हुई। फरवरी 2022 में बनाए नियमों के अनुसार हिट एंड रन मामलों में मृत लोगों के लिए 2 लाख के मुआवजे का नियम है। तमिलनाडु सरकार ने 10 लाख तो प्रधानमंत्री ने 2 लाख मुआवजे की घोषणा की है। लेकिन सरकारी सिस्टम में खामियों की वजह से मरने वाले अनेक लोगों को कोई मुआवजा नहीं मिलता। मुआवजे की रकम चुनावी नफे-नुकसान के अनुसार निर्धारित होना असंवैधानिक है। एक संविधान और एक नागरिकता वाले देश के सभी राज्यों में पीड़ितों को समान रूप से मुआवजे का एक कानून होना चाहिए। 5. चुनावी रथ : आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव ने चुनावी रथ की शुरुआत की थी। आडवाणी की रथ-यात्रा की सफलता के बाद नेताओं में रोड-शो का चलन बढ़ गया। बड़े नेताओं का अनुसरण करते हुए विजय ने भी रथ को चुनावी मंच में तब्दील कर लिया था। थिंक टैंक सीएएससी ने पिछले आम चुनावों के समय चुनाव आयोग से गैर-कानूनी चुनावी रथ और रोड-शो के चलन पर रोक लगाने की मांग की थी। जिस सख्ती से बिहार में वोटर लिस्ट के शुद्धिकरण का अभियान चल रहा है, उसी तर्ज पर चुनावी रथ और रोड-शो को रोकने के लिए कानून लागू हों तो लोकतंत्र और संविधान दोनों के प्रति जेन-जी और युवाओं का सम्मान ज्यादा बढ़ेगा। स्कूल, अस्पताल, ब्लड-बैंक और जरूरी सुविधाओं के इलाकों में रोड-शो नहीं हो सकता। काफिले में दस से ज्यादा गाड़ियां न हों। उनका पूर्व विवरण देना भी जरूरी है। रोड-शो के दौरान आधी सड़क में यातायात सुचारु जारी रहना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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