UK Ban On Oil Companies: अमेरिका के बाद ब्रिटेन ने भारत को दिया झटका, तेल कंपनी पर लगा दिया आर्थिक प्रतिबंध, जानें क्या होगा असर

ब्रिटेन ने रूस के खिलाफ अपने आर्थिक कदमों को और सख्त करते हुए एक बड़ा फैसला लिया है. इस बार निशाने पर सिर्फ रूस ही नहीं, बल्कि भारत और चीन की कुछ तेल कंपनियां भी आ गई हैं. ब्रिटिश सरकार ने यूक्रेन में चल रहे युद्ध को लेकर रूस की फंडिंग को रोकने के लिए नए आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों की सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि इसमें भारत की बड़ी ऊर्जा कंपनी न्यारा एनर्जी का नाम भी शामिल है, जो रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदती रही है.

यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है, जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री हाल ही में भारत दौरे से लौटे हैं. इसके कुछ ही दिनों बाद ब्रिटेन ने इन नए प्रतिबंधों की घोषणा की. सरकार का कहना है कि इन कदमों का मकसद रूस की आर्थिक ताकत को कमजोर करना और यूक्रेन युद्ध के लिए उसकी फंडिंग को रोकना है. ब्रिटिश चांसलर रेचेल रीव्स ने कहा कि रूस अब वैश्विक तेल बाजार से धीरे-धीरे बाहर हो रहा है और ब्रिटेन यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी देश या कंपनी उसके तेल व्यापार को सहारा न दे सके. मामले पर ब्रिटिश चांसलर रेचेल रीव्स कहा, ”हम उन सभी कंपनियों पर दबाव बनाएंगे जो रूस की मदद कर रही हैं. चाहे वे भारत में हों या चीन में. रूस के तेल के लिए अब वैश्विक बाजारों में कोई जगह नहीं है.”

न्यारा एनर्जी पर लगे प्रतिबंध की वजह

भारत की न्यारा एनर्जी एक प्रमुख निजी तेल रिफाइनरी कंपनी है, जिसने पिछले साल रूस से रिकॉर्ड स्तर पर तेल खरीदा था. रिपोर्टों के मुताबिक, साल 2024 में न्यारा एनर्जी ने 100 मिलियन बैरल रूसी कच्चे तेल का आयात किया, जिसकी कीमत लगभग 5 बिलियन डॉलर (करीब 41 हजार करोड़ रुपये) थी. ब्रिटिश सरकार ने इस बात पर नाराजगी जताई कि भारत और चीन की कुछ कंपनियां रूस से तेल खरीदकर उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही हैं. सरकार का मानना है कि ये खरीदारी रूस को यूक्रेन युद्ध में लड़ाई जारी रखने की आर्थिक क्षमता देती है, इसलिए न्यारा एनर्जी पर लगाए गए ये प्रतिबंध ब्रिटेन की उस कोशिश का हिस्सा हैं, जिसके तहत वह रूस के किसी भी आर्थिक सहयोगी पर शिकंजा कसना चाहता है.

रूस की तेल कंपनियों और टैंकरों पर भी कार्रवाई

ब्रिटेन ने सिर्फ भारतीय कंपनी पर ही नहीं, बल्कि रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों और उसके ‘शैडो फ्लीट’ पर भी प्रतिबंध लगाए हैं. शैडो फ्लीट वे जहाज हैं, जो समुद्री निगरानी से बचते हुए रूसी तेल को अलग-अलग देशों में पहुंचाते हैं. सरकार के अनुसार, इन जहाजों की संख्या लगभग 44 है और ये हर दिन लाखों बैरल तेल लेकर वैश्विक बाजारों में जाते हैं. ब्रिटेन का कहना है कि इन टैंकरों और कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने से रूस के लिए अंतरराष्ट्रीय तेल व्यापार करना बेहद मुश्किल हो जाएगा. इन प्रतिबंधों से बीमा, भुगतान और बंदरगाह सेवाओं पर असर पड़ेगा, जिससे रूस की तेल आपूर्ति पर सीधा प्रभाव पड़ेगा.

वैश्विक तेल बाजार पर असर

ब्रिटेन के इस कदम से वैश्विक तेल बाजार में नई अनिश्चितता पैदा हो गई है. अगर रूस की सप्लाई पर रोक लगती है तो तेल की कीमतों में अस्थायी उछाल आ सकता है. वहीं, रूस अपने पुराने ग्राहकों को बनाए रखने के लिए तेल को भारी डिस्काउंट पर बेच सकता है, जिससे कुछ देशों में कीमतें कम भी हो सकती हैं.

ब्रिटेन की नीति और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

ब्रिटेन का यह कदम एक बड़ी भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. सरकार का उद्देश्य यह दिखाना है कि अब रूस के साथ ऊर्जा व्यापार करने वालों को भी जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी. हालांकि, इस फैसले से ब्रिटेन और भारत के बीच कुछ आर्थिक तनाव की संभावना भी जताई जा रही है, क्योंकि न्यारा एनर्जी जैसी कंपनियां भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाती हैं. फिर भी ब्रिटिश सरकार का कहना है कि उसकी प्राथमिकता रूस की आर्थिक ताकत को कमजोर करना है न कि अन्य देशों के साथ संबंध बिगाड़ना.

अमेरिकी तेल खरीदेगा भारत

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में एक नया अध्याय खुलने जा रहा है. दोनों देशों के बीच चल रही ट्रेड डील बातचीत के बीच भारत सरकार ने यह संकेत दिया है कि वह अमेरिकी तेल और गैस की खरीद को बढ़ाने के लिए तैयार है. यह फैसला न केवल व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनीतिक सहयोग को भी नई दिशा दे सकता है.

तेल व्यापार में भारत की नई नीति

भारत लंबे समय से ऊर्जा सुरक्षा को लेकर अपनी नीतियों में संतुलन साधने की कोशिश करता आया है. अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख ऊर्जा साझेदार रहा है. कुछ साल पहले भारत अमेरिका से लगभग 25 अरब डॉलर मूल्य का तेल और गैस आयात कर रहा था, लेकिन हाल के महीनों में यह आंकड़ा घटकर 12 से 13 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.

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