दुनिया में दो ऐसे देश हैं, जिनकी सीमा पर रात का अंधेरा जैसे हर रहस्य को छुपा लेता है. झाड़ियों में झींगुरों की हल्की आवाज के बीच अचानक गूंजती हैं तीखी, असहनीय चीखें, मानो खोई हुई आत्माएं अंधकार से बाहर निकल कर पुकार रही हों. स्थानीय लोग और सैनिक, सभी डर के सन्नाटे में हैं. यह कोई कहानी नहीं, बल्कि वास्तविक घटनाओं का सिलसिला है, जहां हर रात डर और रहस्य का पर्दा धीरे-धीरे उठता है. आज की तारीख में भले ही किसी से अगर भूत-प्रेत की बात की जाए तो उसे लोग मजाक समझ लें, लेकिन यहां के लोग इसे ही सच मानते हैं.
रात में डर और मानसिक तनाव
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर ऐसी आवाजें सुनी गई हैं. इन आवाजों में भटकती आत्माओं की करुण ध्वनियां, रोने जैसी चीखें और कभी-कभी विमान इंजनों की गर्जना शामिल होती है, जो पूरी रात गूंजती रहती हैं. बच्चों को नींद नहीं आती, बुजुर्गों का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और सीमा पर तैनात सैनिक भी इन आवाजों से परेशान हो जाते हैं.
मानवाधिकार आयोग की चेतावनी
कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री और वर्तमान सीनेट अध्यक्ष हुन सेन ने फेसबुक पर लिखा था कि यह कोई साधारण शरारत नहीं है, बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन और मनोवैज्ञानिक युद्ध है. उन्होंने 11 अक्टूबर की एक चिट्ठी शेयर की थी, जो कंबोडियाई मानवाधिकार आयोग ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टुर्क को भेजी थी. इसमें कहा गया कि थाई सैनिकों द्वारा सीमावर्ती इलाकों में भूतिया आवाजें फैलाने से नागरिकों में भय, चिंता और मानसिक तनाव पैदा हो रहा है.
भूतिया आवाजें कैसे आती हैं?
स्थानीय लोगों और सैनिकों का दावा है कि ये आवाजें किसी रिकॉर्डिंग से आती हैं. कभी ये मानवीय लगती हैं, जैसे कोई मदद मांग रहा हो, और फिर अचानक लाउडस्पीकर से लोहे जैसी खनखनाती आवाज गूंजती है. यह ध्वनि सुनकर किसी का भी दिल थम सकता है.
लोगों में फैला डर का माहौल
थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर उठती यह रहस्यमय और डरावनी आवाजें अब तक कई लोगों के लिए भय और तनाव का कारण बन चुकी हैं. सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वाले लोग अब रात में अपने घरों से बाहर निकलने से डरते हैं. यह मामला न केवल सीमा विवाद का हिस्सा है, बल्कि मनोवैज्ञानिक युद्ध और मानवाधिकार उल्लंघन की भी चेतावनी देता है.
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