- Hindi News
- Opinion
- Derek O’Brien’s Column Unemployment On One Side And Millions Of Vacant Posts On The Other
-
कॉपी लिंक
मैं पिछले छह सालों से यह कॉलम लिख रहा हूं, लेकिन यह पहली बार है जब मैं एक ही विषय पर लगातार दो कॉलम लिख रहा हूं। एक पखवाड़े पहले इस कॉलम का विषय था- निजी क्षेत्र में बेरोजगारी। इस हफ्ते, हम सार्वजनिक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं। युवा बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। देश की सबसे बड़ी नियोक्ता- यानी सरकार ने लाखों पदों को नहीं भरा है।
सरकारी विभागों में रिक्त पदों की संख्या पर करीब नजर डालने पर एक बिल्कुल अलग कहानी सामने आती है। शिक्षकों और डॉक्टरों से लेकर वैज्ञानिकों और सुरक्षाकर्मियों तक- कर्मचारियों की कमी से हर क्षेत्र ग्रस्त है। इससे न केवल रोजगार का संकट पैदा हुआ है, बल्कि सुप्रशासन में भी रुकावट आती है। केवल एक उदाहरण लें : रेलवे की ही 64,000 रिक्तियों के लिए दो करोड़ लोगों ने आवेदन किया था!
शिक्षा : इस क्षेत्र में तो रिक्तियों की समस्या बहुत ही अधिक गंभीर है। जरा इन आंकड़ों पर गौर करें। केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में 12,000 से ज्यादा पद खाली हैं। यूडीआईएसई+ रिपोर्ट 2024-2025 के अनुसार, एक लाख से ज्यादा स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इसके अलावा, केंद्रीय विश्वविद्यालय भी रिक्तियों से जूझ रहे हैं- हर चार में से एक पद खाली है। जैसा कि एक संसदीय समिति ने उजागर किया है, इस कमी ने संकाय-छात्र अनुपात और शिक्षण की गुणवत्ता, दोनों को प्रभावित किया है।
रिसर्च : रिक्तियों की समस्या अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) के क्षेत्र तक फैली हुई है। कुछ उदाहरण देखें। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए चार में से एक से ज्यादा पद रिक्त हैं, जबकि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) में वैज्ञानिकों के लिए लगभग पांच में से दो पद रिक्त होने के कारण रिक्तियों की दर और भी ज्यादा है। इसका सीधा असर यह होता है कि भारत इनोवेशन, वैज्ञानिक शोधपत्रों और पेटेंट के मामले में अमेरिका और चीन जैसे देशों से पीछे है।
स्वास्थ्य सेवा : सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में दस में से सात विशेषज्ञ पद रिक्त हैं, जबकि डॉक्टरों के पांच में से एक पद रिक्त हैं। एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी फैकल्टी की कमी से जूझ रहे हैं। 20 कार्यरत एम्स में पांच में से दो पद रिक्त हैं। इससे न केवल इलाज पर असर पड़ता है, स्वास्थ्यकर्मियों पर भी बोझ पड़ता है।
नागरिक उड्डयन और रेलवे : आसमान में बादल छाए हुए हैं और हालात को पटरी पर लाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है! डीजीसीए में दो में से एक पद रिक्त है। एक संसदीय समिति ने इसे भारत की सुरक्षा निगरानी प्रणाली के मूल में गंभीर कमजोरी बताया है। इसके अलावा, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स गिल्ड ने नियंत्रकों की लगातार कमी पर चिंता जताई थी, जिस कारण महत्वपूर्ण परिचालन इकाइयां बंद हो रही हैं और आपातकालीन प्रतिक्रियाएं बाधित हो रही हैं। वहीं हाल ही में प्रकाशित एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2023 में रेल दुर्घटनाओं में उससे पिछले वर्ष की तुलना में 6.7% की वृद्धि हुई। रेलवे में अकेले सुरक्षा श्रेणी में ही 1.5 लाख से ज्यादा पद खाली हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा : इसमें अपने अडिग रवैये को लेकर सरकार बहुत गर्व करती है। लेकिन जमीनी हकीकत क्या है? एनआईए में स्वीकृत पदों में से दस में से तीन पद रिक्त हैं, जिससे प्रभावी जांच में बाधा आ रही है। अर्धसैनिक बलों- जिनका कार्यक्षेत्र सीमा सुरक्षा भी है- में वर्तमान में एक लाख से ज्यादा पद रिक्त हैं। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा में कमी आती है और मौजूदा बलों पर दबाव बढ़ता है, जिससे कर्मियों में आत्महत्या और हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
वैधानिक प्राधिकरण : सबसे कमजोर लोगों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएं भी रिक्तियों की समस्या से अछूती नहीं। इस स्तंभकार द्वारा हाल में संसद में पूछे एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने स्वीकारा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त हैं। इसी प्रकार, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में उपाध्यक्ष और एक सदस्य (कुल दो में से) के पद मार्च 2024 से ही रिक्त हैं।
मंत्रालय और विभाग : स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग में एक-चौथाई कर्मचारियों की कमी है, जबकि प्रत्यक्ष कर बोर्ड और अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड जैसे निकायों में क्रमशः 34% और 26% की रिक्तियां हैं। जबकि किसी ने तो सालाना दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था! जैसा कि रोमन कवि ओविड ने कहा है, ‘वादों के मामले में हर कोई करोड़पति है!’
- मानसून सत्र के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में रिक्तियों का आंकड़ा लगभग 15 लाख बताया था। खाली पदों को भरें। नौकरियों को हकीकत में बदलें। समय आ गया है कि ‘विकसित भारत’ को ‘फिक्स-इट भारत’ में बदलें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख की सहायक शोधकर्ता अंजना अंचायिल हैं।)

Leave a Reply