सुशील दोशी का कॉलम:क्या भारत ओलिंपिक जैसे आयोजन के लिए तैयार है?
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दुनिया की अर्थव्यवस्था में तेजी से कदम बढ़ाता हुआ भारत अब बहुत महत्वाकांक्षी हो गया है। सन् 2036 में भारत में ओलिंपिक के आयोजन के लिए हमने दावा पेश किया है। इस दावे ने दुनिया की आंखों में भारत के महत्व व बढ़ती ताकत का नया रंग प्रस्तुत किया है। कार्य मुश्किल है, पर असंभव नहीं। आइए, इसके आयोजन के सामने खड़ी चुनौतियों व संभावनाओं पर चर्चा करते हैं।
भारत में ओलिंपिक के आयोजन के लिए सबसे पहली चुनौती बुनियादी ढांचे की है। नए स्टेडियमों का निर्माण, ओलिंपिक मापदंड के खेलकूद के मैदान, यातायात व ठहरने की उचित व्यवस्था, लोगों के आवागमन की पर्याप्त तैयारियां व खेलगांवों की संरचनाएं बड़ी चुनौती हैं। विशाल धनराशि के खर्च के प्रति लोगों का एक वर्ग भी बाधा बन सकता है। विकासशील देश होने के नाते एक वर्ग इसे अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ भी मान सकता है।
दूसरी चुनौती है इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) के रुख की। मान्यता प्रदान करने वाली इस प्रतिष्ठित संस्था ने पहले तो भारत को अपना घर “स्वच्छ’ रखने की हिदायत दे दी है। क्योंकि इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन (आईओए) पारदर्शिता की कमी व भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना करता रहा है।
आईओसी की कड़ी नजर आईओए के क्रियाकलापों पर पड़ गई है। फिर अभी वर्ल्ड पैराएथलेटिक्स के भारत में आयोजन के वक्त कुत्तों द्वारा प्रशिक्षकों को काट लेने व एथलेटिक ग्राउंड पर कांच के टुकड़े पाए जाने की खबर ने बड़ी फजीहत की है। क्या भारत ओलिंपिक जैसा विशाल आयोजन कर पाएगा? इस पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।
तीसरी बात ओलिंपिक में हमारे खिलाड़ियों के प्रदर्शन से जुड़ी है। पिछले ओलिम्पिक में हम पदकों के मामले में विश्व में 71वें स्थान पर आए थे। अगर ओलिंपिक भारत में होता है तो क्या हम ऐसे पदक विजेता खिलाड़ी दिखा पाएंगे, जो एक खेलप्रिय देश को दिखाना चाहिए? अन्यथा हमें तो एक तमाशबीन देश की ही संज्ञा दी जाएगी, जो आयोजन तो बड़े करता है, पर दक्षता के नाम पर सिफर है।
हमें ओलिंपिक के आयोजन के लिए न केवल विश्वस्तरीय स्टेडियम, रहन-सहन की व्यवस्था, यातायात व्यवस्था, अच्छे ग्राउंड्स तैयार करने होंगे, बल्कि जबर्दस्त खर्च भी करना पड़ेगा। अनुमान है कि तमाम विश्वस्तरीय सुविधाएं जुटाने में 64 हजार करोड़ रुपयों की लागत लग सकती है।
2028 में लॉस एंजिलिस में होने वाले ओलिंपिक की लागत 43,633 करोड़ रुपए आंकी गई है। यानी भारत में 2036 ओलिंपिक इतिहास का सबसे महंगा कहा जाएगा। क्या एक विकासशील देश इतना खर्च कर पाएगा?
वहीं भारत में ओलिंपिक आयोजन के पक्ष में भी कुछ पहलू हैं। जैसे भारत सरकार का खुला समर्थन इस आयोजन को सफल बना सकता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह इसे प्रतिष्ठा की बात मानते हैं। अहमदाबाद और गांधीनगर को योजना का प्रमुख अंग बनाया गया है। यहां विश्वस्तरीय सुविधाएं जुटाई जा सकती हैं। अन्य चुने हुए भागीदार शहरों में मुंबई व पुणे का भी नाम है।
भारत के दावे को उन्नतिशील अर्थव्यवस्था व सबसे बड़ी युवा आबादी भी मजबूती प्रदान करती है। मोदी और शाह गुजरात की अस्मिता के भी प्रतीक हैं और चूंकि देश के लिए गुजरात में ऐसा विश्वस्तरीय आयोजन होगा तो उनकी छवि को चार चांद लग जाएंगे। अतः यह दुष्कर कार्य भी संभव हो सकेगा। ऐसे में दिलचस्पी के साथ हमें देखना यह है कि भारत के पुख्ता दावे को इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी स्वीकार करती है या नहीं।
ओलिंपिक के आयोजन के लिए न केवल विश्वस्तरीय स्टेडियम, रहन-सहन की व्यवस्था, यातायात व्यवस्था, अच्छे मैदान तैयार करने होंगे, बल्कि जबर्दस्त खर्च भी करना पड़ेगा। इसमें 64 हजार करोड़ रु. लग सकते हैं। (ये लेखक के निजी विचार हैं)
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