Latest And Breaking Hindi News Headlines, News In Hindi | अमर उजाला हिंदी न्यूज़ | – Amar Ujala – भारत ने संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट की निंदा की, म्यांमार में समावेशी राजनीतिक वार्ता का आह्वान किया – अमर उजाला हिंदी समाचार लाइव
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भारत ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति के खिलाफ ‘पक्षपातपूर्ण और टिप्पणी’ की आलोचना की है। साथ ही भारत ने पड़ोसी देशों में हिंसा पर रोक और समावेशी राजनीतिक संवाद शुरू करने की अपील दोहराई।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति में मंगलवार को म्यांमार की स्थिति पर संवाद सत्र आयोजित किया गया। इस दौरान नामांकित दिलीप सैकिया ने भारत का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली सभी पहल का समर्थन करते हैं, म्यांमार में शांति, स्थिरता और लोकतंत्र की वापसी के लिए वहां के लोगों और सरकार के नेतृत्व वाले मार्ग को मजबूत करते हैं।
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उन्होंने आगे कहा, हम अपनी इस निरंतर स्थिति को दोहराते हैं कि हिंसा को पुनर्जीवित किया जाए, राजनीतिक समाधानों को रिहा किया जाए, मानवीय सहायता की अंतिम आपूर्ति सुनिश्चित की जाए और समग्र राजनीतिक बातचीत शुरू की जाए। संयुक्त राष्ट्र की तीसरी समिति मानवता और अर्थव्यवस्था से संबंधित मामले आवश्यक हैं। यह समिति 2021 में सैन्य तख्तापलट और सेनाओं के बीच जारी हिंसा के बाद म्यांमार की बर्बरता की स्थिति पर चर्चा कर रही थी।
सैकिया भाजपा नेता प्रतिपक्ष दग्गुबाती पुरंदेश्वरी के नेतृत्व में 80वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले बहुदलीय अलैहिस्सलाम का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा जन-दर्शन दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया है। यूएन की रिपोर्ट में भारत के खिलाफ की गई वकालत की आलोचना करते हुए सैकिया ने कहा, मैं अपने देश के संबंध की रिपोर्ट में बेबुनियाद और एजिकोटिपूर्ण विचारधारा पर गंभीर दस्तावेज दर्ज कराता हूं।
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उन्होंने कहा कि अप्रैल 2025 में म्यांमार के सहयोगियों पर हुए हमले में लोगों से जुड़ने का दावा पूरी तरह सच है। मेरा देश विशेष प्रतिवेदक की ओर से बताए गए इस तरह के पूर्वाग्रह वाले विश्लेषण को ठीक करता है। भाजपा सांसद ने जोर देकर कहा कि भारत के लिए म्यांमार में समुद्री सुरक्षा और मानवीय स्थिति ‘गंभीर चिंता’ का विषय है, विशेष रूप से सीमा पार अपराध जैसे कि मादक द्रव्य, हथियार और मानव तत्वों से जुड़े संबंधों का कारण। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत ने कुछ लोगों को ‘चरमपंथी रेगिस्तान के बढ़ते स्तर’ में देखा है, जिससे ‘कानून व्यवस्था पर दबाव और असर’ पड़ रहा है।