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  • पहले वनडे में हार के बाद इस भारतीय क्रिकेटर ने लिया संन्यास, अचानक रिटायरमेंट लेकर सबको चौंकाया

    पहले वनडे में हार के बाद इस भारतीय क्रिकेटर ने लिया संन्यास, अचानक रिटायरमेंट लेकर सबको चौंकाया

    देश के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने वाले जम्मू-कश्मीर के पहले क्रिकेटर परवेज़ रसूल ने खेल के सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी है. इस तरह उनके 17 साल के शानदार करियर का अंत हो गया, जिसमें उन्होंने लगातार अच्छे प्रदर्शन और कई उपलब्धियां हासिल की थीं. परवेज ने भारत के लिए 2014 में वनडे डेब्यू किया था. वहीं 2017 में उन्होंने भारत के लिए पहला टी20 मैच खेला था.

    दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा के 36 वर्षीय ऑलराउंडर, जो घाटी में युवा क्रिकेटरों के लिए आशा की किरण बने, ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को अपने फैसले की जानकारी दी. रसूल ने एक वनडे और एक टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. इसके अलावा वह पुणे वॉरियर्स और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के साथ इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में भी खेल चुके हैं.

    परवेज़ रसूल ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें जम्मू-कश्मीर क्रिकेट की विकास गाथा का हिस्सा बनने पर गर्व है. इन वर्षों में, रसूल ने खुद को एक भरोसेमंद ऑलराउंडर के रूप में स्थापित किया है, उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 5,648 रन बनाए हैं और 352 विकेट लिए हैं. घरेलू क्रिकेट में उनके लगातार अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें रणजी ट्रॉफी में सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडर के लिए प्रतिष्ठित लाला अमरनाथ पुरस्कार से दो बार सम्मानित किया गया. यह अवॉर्ड उन्हें 2013-14 और 2017-18 में मिला था. 2012-13 के उनके शानदार प्रदर्शन ने, जहां उन्होंने 594 रन बनाए और 33 विकेट लिए, राष्ट्रीय टीम और आईपीएल में उनके प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया. 

    परवेज रसूल ने भारत के लिए खेले एक वनडे में दो विकेट झटके थे. वहीं उनकी बैटिंग नहीं आई थी. इसके अलावा देश के लिए एक टी20 इंटरनेशनल मैच खेले परवेज रसूल ने एक विकेट चटकाया और पांच रन बनाए थे. इसके अलावा परवेज आईपीएल में कुल 11 मैच खेले. आईपीएल में उनके नाम 17 रन और 4 विकेट हैं. परवेज ने बांग्लादेश के खिलाफ वनडे और इंग्लैंड के खिलाफ टी20 मैच खेला था.

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  • आर्मी जनरल या पुलिस DGP, जानें कौन ज्यादा शक्तिशाली? यहां पढ़ें सैलरी समेत तमाम डिटेल्स

    आर्मी जनरल या पुलिस DGP, जानें कौन ज्यादा शक्तिशाली? यहां पढ़ें सैलरी समेत तमाम डिटेल्स

    देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले दो उच्च पद हैं आर्मी जनरल और डीजीपी (Director General of Police). जहां आर्मी जनरल देश की सीमाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालते हैं, वहीं डीजीपी राज्य की आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए काम करते हैं. हालांकि दोनों ही पद बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके कार्यक्षेत्र, शक्तियां और जिम्मेदारियां अलग-अलग हैं. आइए जानते हैं कि आर्मी जनरल और डीजीपी में क्या अंतर है और उनके अधिकार, सैलरी और कार्यक्षेत्र कैसे हैं.

    आर्मी जनरल देश की राष्ट्रीय सुरक्षा का सबसे बड़ा प्रहरी होता है. वह भारत की सीमाओं, युद्ध की तैयारियों और आतंकवाद जैसी स्थितियों से निपटने के लिए पूरी सेना का संचालन करता है. आर्मी जनरल सीधे राष्ट्रपति और रक्षा मंत्रालय को रिपोर्ट करते हैं. उनकी भूमिका रणनीतिक होती है और देश की सुरक्षा के लिए निर्णायक होती है. युद्ध, राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे और सीमापार की किसी भी गतिविधि में आर्मी जनरल की राय और निर्णय सर्वोपरि होते हैं.

    डीजीपी का कार्य और जिम्मेदारियां

    डीजीपी राज्य की कानून व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा का प्रमुख अधिकारी होता है. वह राज्य सरकार को रिपोर्ट करता है और सीधे राज्य के गृह सचिव तथा मुख्यमंत्री के अधीन काम करता है. डीजीपी का मुख्य काम राज्य में अपराध पर नजर रखना, कानून-व्यवस्था बनाए रखना और पुलिस बल का संचालन करना होता है. वे भी आतंकवाद और राज्य स्तर के गंभीर अपराधों से निपटते हैं, लेकिन उनकी जिम्मेदारी केवल अपने राज्य तक सीमित होती है.

    कौन है ज्यादा शक्तिशाली?

    जहां दोनों पद अपने-अपने क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, वहीं आर्मी जनरल को डीजीपी के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है. इसका कारण यह है कि आर्मी जनरल पूरे देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होता है. वह न केवल युद्ध और आतंकवाद जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करता है, बल्कि देश के सामरिक निर्णयों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. डीजीपी की जिम्मेदारी केवल एक राज्य की कानून व्यवस्था तक सीमित होती है.

    सैलरी और भत्ते

    दोनों पदों की सैलरी की बात करें तो इसमें ज्यादा अंतर नहीं है. आर्मी जनरल को मासिक 2.5 लाख रुपये की सैलरी मिलती है, जबकि डीजीपी को 2.25 लाख रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. इसके अलावा दोनों को सरकारी आवास, वाहन, सुरक्षा, मेडिकल सुविधाएं और उच्च स्तर की पेंशन जैसी सुविधाएं दी जाती हैं. आर्मी जनरल को अतिरिक्त सुविधा के तौर पर सेना कैंटीन का लाभ भी मिलता है.

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  • राजस्थान के लाखों सरकारी कर्मचारियों को झटका! OPS पर बड़ा फैसला लेने की तैयारी में सरकार

    राजस्थान के लाखों सरकारी कर्मचारियों को झटका! OPS पर बड़ा फैसला लेने की तैयारी में सरकार

    राजस्थान में सवा पांच लाख से ज्यादा राज्य कर्मचारियों की ओल्ड पेंशन स्कीम पर एक बार फिर से खतरा मंडराने लगा है. सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को खत्म कर न्यू पेंशन स्कीम लागू करने की शुरुआत कर दी है. पहले फेज में घाटे में चल रहे हैं निगमों – बोर्डों और आयोगों के साथ ही कुछ यूनिवर्सिटीज को भी ओल्ड पेंशन स्कीम खत्म करने की छूट दे दी है. प्रयोग के तौर पर अभी इस वहां लागू करने की कोशिश की जा रही है, जहां कर्मचारियों की संख्या बेहद सीमित है. 

    इस प्रयोग को लेकर कर्मचारियों और उनके संगठनों ने अभी से विरोध शुरू कर दिया है. उन्हें इस बात की आशंका सताने लगी है कि कुछ दिनों बाद इसे पूरे राजस्थान में लागू कर दिया जाएगा. कर्मचारियों का साफ तौर पर कहना है कि वह इसे वह किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे और इसके लिए लोकतांत्रिक तरीके से हर लड़ाई लड़ेंगे. 

    दरअसल, राजस्थान की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने साल 2022 में यह ऐलान किया था कि जो भी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना में शामिल होना चाहते हैं वह इसके लिए आवेदन कर सकते हैं. राज्य के तकरीबन सभी कर्मचारियों ने इसके बाद अपनी पेंशन योजना में बदलाव कर दिया था. 1 अप्रैल 2023 से राज्य के 5,24,822 कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का फायदा मिलना शुरू हो गया था. देश के दूसरे हिस्सों की तरह राजस्थान में भी 1 जनवरी 2004 से ओल्ड पेंशन स्कीम मिलनी बंद हो गई थी. हालांकि पुराने कर्मचारियों को यह लगातार मिल रही है. 

    इस बात की छूट दे दी कि अगर वह चाहे तो अपने कर्मचारियों की ओल्ड पेंशन स्कीम खत्म कर उन्हें एनपीएस के दायरे में ला सकती हैं. हालांकि इसे लागू करने से पहले उन्हें सरकार से औपचारिक तौर पर मंजूरी लेनी होगी. जिन संस्थाओं को अभी ओल्ड पेंशन स्कीम खत्म करने की छूट दी गई है, उनमें कर्मचारियों की संख्या बेहद सीमित है. ऐसे में वहां से विरोध की तेज आवाज नहीं निकल पा रही है. 

    सरकार के इस फैसले के बाद राज्य के दूसरे कर्मचारियो और उनके संगठनों ने इसे लेकर विरोध शुरू कर दिया है. हालांकि विरोध के स्वर अभी धीमे हैं, लेकिन दीपावली और छठ के त्यौहार के बाद इसे धार देने की तैयारी की जा रही है. कर्मचारियों का साफ तौर पर कहना है कि सरकार एक तरह का प्रयोग कर रही है. संस्थाओं के बाद इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा और पांच लाख से ज्यादा कर्मचारियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. 

    कर्मचारी फिलहाल अपने-अपने दफ्तरों या कार्य स्थलों पर ही प्रदर्शन और नारेबाजी कर अपना विरोध जाता रहे हैं, लेकिन उनका साफ तौर पर कहना है कि आने वाले दिनों में वह सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे और जरूरत पड़ने पर कामकाज ठप कर हड़ताल पर जाने को भी मजबूर होंगे. कर्मचारियों का कहना है कि अगर सांसद और विधायक खुद अपनी पेंशन योजना में बदलाव नहीं कर रहे हैं तो कर्मचारियों को इसका शिकार क्यों बनाया जा रहा है. वह इसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं करेंगे और हर स्तर पर इसका विरोध करेंगे. 

    चूंकि मामला पांच लाख से ज्यादा कर्मचारियों के हितों से जुड़ा हुआ है, इसलिए सियासी पार्टियां भी इसमें कतई पीछे नहीं रहना चाहतीं. विपक्ष ने भी आंदोलन कर रहे कर्मचारियो का साथ देने की बात कही है. कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का कहना है कि बीजेपी की मौजूदा सरकार किसी के हित के बारे में नहीं सोच रही है और वह सभी को परेशान करने में लगी हुई है. उनके मुताबिक कर्मचारी अगर इसे लेकर आवाज उठाएंगे तो कांग्रेस पार्टी उनके साथ खड़ी नजर आएगी. 

    दूसरी तरफ बैकफुट पर आई राजस्थान सरकार का कहना है कि वह जरूरत पड़ने पर कर्मचारियों से बातचीत करने को तैयार है. राज्य के डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा के मुताबिक सरकार कर्मचारियों से बातचीत करके ही कोई कदम उठाएगी. 

    दूसरी तरफ इस बारे में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ का दावा है कि ओल्ड पेंशन स्कीम की जगह नई पेंशन स्कीम लागू किए जाने को लेकर कर्मचारियों में कतई कोई नाराजगी नहीं है. अब देखना यह होगा किसी कर्मचारियों की नाराजगी के बाद राजस्थान सरकार अपने कदम वापस खींचती है या फिर ओल्ड पेंशन स्कीम को ही खत्म करती है.

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  • 50 साल की शिल्पा शेट्टी को खूबसूरती में टक्कर देती हैं बहन शमिता, एक-एक तस्वीर है गवाह

    50 साल की शिल्पा शेट्टी को खूबसूरती में टक्कर देती हैं बहन शमिता, एक-एक तस्वीर है गवाह

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  • क्या होता है Cloud Storage? जानिए कैसे काम करता है और कहां रखी जाती हैं आपकी डिजिटल फाइलें

    क्या होता है Cloud Storage? जानिए कैसे काम करता है और कहां रखी जाती हैं आपकी डिजिटल फाइलें

    Cloud Storage: आज के डिजिटल युग में हर व्यक्ति के पास ढेर सारी फोटो, वीडियो, डॉक्यूमेंट्स और ऐप डेटा होता है. लेकिन फोन या लैपटॉप की सीमित स्टोरेज स्पेस के कारण सबकुछ एक ही जगह सेव करना मुमकिन नहीं. ऐसे में Cloud Storage एक आधुनिक और सुरक्षित समाधान बनकर सामने आया है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप कोई फाइल क्लाउड में सेव करते हैं तो वह असल में जाती कहां है और काम कैसे करती है? आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं.

    क्लाउड स्टोरेज का मतलब है आपकी डिजिटल फाइलों को इंटरनेट के ज़रिए किसी रिमोट सर्वर पर सेव करना. यानी आपकी फोटो या वीडियो आपके फोन या कंप्यूटर में नहीं, बल्कि किसी कंपनी के डेटा सेंटर में रखी जाती है. यह डेटा सेंटर हजारों शक्तिशाली कंप्यूटरों और सर्वरों से बना होता है जो दिन-रात चालू रहते हैं और आपके डेटा को सुरक्षित रखते हैं.

    जब भी आप Google Drive, iCloud, Dropbox या OneDrive जैसी क्लाउड सर्विस का इस्तेमाल करते हैं तो आपकी फाइल इंटरनेट के ज़रिए उस कंपनी के सर्वर तक पहुँचती है. वहां फाइल को छोटे-छोटे डेटा ब्लॉक्स में तोड़कर कई सर्वर्स पर सेव किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि अगर किसी सर्वर में तकनीकी खराबी आ जाए तो आपका डेटा दूसरे सर्वर से आसानी से रिकवर हो सके. इसे Data Redundancy कहा जाता है.

    इसके बाद, जब आप उसी फाइल को दोबारा खोलते हैं तो सिस्टम इन सभी डेटा ब्लॉक्स को जोड़कर आपको पूरी फाइल के रूप में दिखा देता है. यह पूरा प्रोसेस कुछ सेकंड्स में हो जाता है और आपको लगता है कि आपकी फाइल बस क्लाउड में सुरक्षित पड़ी है.

    क्लाउड कंपनियां अपने सर्वर पर सेव किए गए डेटा को एन्क्रिप्शन (Encryption) तकनीक से सुरक्षित रखती हैं. इसका मतलब है कि आपकी फाइलें एक कोडेड फॉर्म में रहती हैं जिसे कोई अनजान व्यक्ति पढ़ या एक्सेस नहीं कर सकता. सिर्फ वही यूज़र फाइल खोल सकता है जिसके पास लॉगिन क्रेडेंशियल्स और एक्सेस परमिशन हो. इसके अलावा, कंपनियां मल्टी-लेयर सिक्योरिटी, फायरवॉल और रेगुलर बैकअप सिस्टम का इस्तेमाल करती हैं ताकि डेटा हैकिंग या लॉस से सुरक्षित रहे.

    क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर्स अपने डेटा सेंटर दुनिया के अलग-अलग देशों में बनाते हैं ताकि सर्विस तेज़ और भरोसेमंद रहे. उदाहरण के लिए, Google के डेटा सेंटर अमेरिका, सिंगापुर, आयरलैंड और भारत जैसे देशों में हैं. इसी तरह, Amazon और Microsoft के भी अपने विशाल सर्वर नेटवर्क हैं जो चौबीसों घंटे डेटा को स्टोर और मैनेज करते हैं.

    क्लाउड स्टोरेज का सबसे बड़ा फायदा है कि आपको अपने डिवाइस में जगह खाली करने की जरूरत नहीं पड़ती और आप कहीं से भी अपनी फाइलें एक्सेस कर सकते हैं. चाहे फोन खो जाए या लैपटॉप क्रैश हो जाए आपका डेटा इंटरनेट पर सुरक्षित रहता है.

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  • दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश ने फ्रांस को दिया झटका, राफेल की जगह चीन से खरीदेगा J-10C फाइटर जेट; कौन सा खतरनाक?

    दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश ने फ्रांस को दिया झटका, राफेल की जगह चीन से खरीदेगा J-10C फाइटर जेट; कौन सा खतरनाक?

    इंडोनेशिया ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण अभियान के तहत एक बड़ा फैसला लेते हुए फ्रांस के राफेल की जगह चीन के 42 J-10C मल्टीरोल फाइटर जेट खरीदने का निर्णय लिया है. रक्षा मंत्री सजाफ्री सजामसोद्दीन ने बताया कि इस सौदे को वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिल गई है, जिसकी अनुमानित कीमत 9 अरब डॉलर है. उन्होंने कहा कि यह सौदा इंडोनेशिया की एयर पावर को मजबूत करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है.

    राफेल और J-10C दोनों ही 4.5 पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं, लेकिन दोनों की क्षमताओं और लागत में बड़ा अंतर है. राफेल फ्रांस का अत्याधुनिक ट्विन इंजन फाइटर जेट, जो Thales के AESA रडार और Meteor मिसाइलों से लैस है. जबकि J-10C चीन का हल्का, तेज और किफायती फाइटर जेट, जिसमें KLJ-7A AESA रडार और PL-15 मिसाइलें हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, राफेल तकनीकी रूप से श्रेष्ठ है, लेकिन J-10C की कम कीमत और आसान रखरखाव ने इंडोनेशिया को उसकी ओर आकर्षित किया.

    इंडोनेशिया के सौदे की खासियत

    इंडोनेशिया ने यह सौदा करते समय कम लागत में अधिक क्षमता की नीति अपनाई. फ्रांसीसी राफेल की कीमत लगभग $120 मिलियन प्रति जेट है, जबकि चीन का J-10C सिर्फ $55–60 मिलियन में उपलब्ध है. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इंडोनेशिया ने राफेल की तुलना में दोगुने विमान आधी कीमत पर हासिल किए हैं. कई रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि चीन ने इस सौदे को आगे बढ़ाने के लिए अपने राजनयिक चैनलों के जरिए फ्रांस-विरोधी अभियान चलाया था.

    चीन की बड़ी जीत- J-10C को मिला नया ग्राहक

    इंडोनेशिया का यह फैसला चीन के रक्षा उद्योग के लिए बड़ी सफलता माना जा रहा है. यह चीन के J-10C फाइटर का दूसरा निर्यात सौदा है पहला पाकिस्तान के साथ हुआ था. इस कदम से चीन ने न सिर्फ दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ाई, बल्कि फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों के सैन्य बाज़ार में चुनौती भी दी है. विश्लेषक बाबाक तगवाई के अनुसार इंडोनेशिया किसी एक गुट में शामिल नहीं होना चाहता. उसने विविध साझेदारियाँ रखकर खुद को स्वतंत्र रखा है.

    इंडोनेशिया का हर देश से रक्षा सहयोग

    इंडोनेशिया की विदेश नीति लंबे समय से गुटनिरपेक्ष (Non-Aligned) रही है. वह अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन सभी के साथ सैन्य संबंध बनाए रखता है. वर्तमान में इंडोनेशियाई वायुसेना के पास रूस के Su-27 और Su-30, अमेरिका के F-16, दक्षिण कोरिया के T-50 फाइटर जेट और फ्रांस के राफेल फाइटर जेट हैं. इसके बाद चीन से डील होने के बाद उसके पास चीन का J-10C फाइटर जेट भी हो जाएगा. यह विविधता उसे ताकत देती है.

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  • Countries Without Armed Forces: दुनिया के इन देशों पास नहीं है कोई सेना, तो कौन करता है इनकी सुरक्षा?

    Countries Without Armed Forces: दुनिया के इन देशों पास नहीं है कोई सेना, तो कौन करता है इनकी सुरक्षा?

    Countries Without Armed Forces: दुनिया के ज्यादातर देशों के पास अपनी-अपनी सेनाएं होती हैं, जो देश की सीमाओं, जनता और हितों की रक्षा करती हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि दुनिया में कुछ ऐसे देश भी हैं जिनके पास अपनी कोई आर्मी नहीं है. फिर भी ये देश सुरक्षित हैं और शांति से अपना शासन चला रहे हैं. आइए जानते हैं कि ये देश कौन हैं, इनके पास सेना क्यों नहीं है और आखिर इनकी सुरक्षा कौन करता है.

    कोस्टा रिका 

    कोस्टा रिका ने 1948 में अपनी सेना खत्म कर दी थी. उस समय देश में गृहयुद्ध के बाद नई सरकार ने फैसला किया कि अब सेना पर खर्च करने के बजाय पैसा शिक्षा और स्वास्थ्य पर लगाया जाएगा. आज कोस्टा रिका की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस और विशेष सुरक्षा बलों के पास है. इसके अलावा, अमेरिका और अन्य लैटिन देशों के साथ इसके रक्षा समझौते हैं.

    आइसलैंड 

    आइसलैंड के पास अपनी कोई स्थायी सेना नहीं है, लेकिन यह देश NATO का सदस्य है. यानी अगर इस पर कोई हमला होता है तो NATO देश इसकी रक्षा करते हैं. यहां सुरक्षा के लिए सिर्फ कोस्ट गार्ड और पुलिस बल हैं, जो सीमाओं और आपात स्थितियों को संभालते हैं.

    वेटिकन सिटी 

    वेटिकन सिटी दुनिया का सबसे छोटा देश है और यह कैथोलिक चर्च का मुख्यालय है. इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्विट्जरलैंड गार्ड संभालते हैं. ये सैनिक पूरी तरह प्रशिक्षित होते हैं और पोप की व्यक्तिगत सुरक्षा का जिम्मा उठाते हैं.

    लीचटेंस्टाइन 

    1868 में आर्थिक कारणों से लीचटेंस्टाइन ने अपनी सेना खत्म कर दी थी. अब इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्विट्जरलैंड पर है. यह देश छोटा है और बेहद शांतिप्रिय माना जाता है, इसलिए यहां बाहरी खतरा लगभग न के बराबर है.

    प्रशांत महासागर का यह छोटा द्वीप राष्ट्र अपनी रक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया पर निर्भर है. नाउरू के पास सिर्फ पुलिस बल है, जो आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था संभालता है.

    मोनाको यूरोप का एक छोटा और अमीर देश है. इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी फ्रांस के पास है. फ्रांस के सैनिक जरूरत पड़ने पर मोनाको की सीमाओं और रक्षा को संभालते हैं, जबकि स्थानीय पुलिस आंतरिक सुरक्षा का ध्यान रखती है.

    समोआ के पास भी सेना नहीं है. यह देश अपनी रक्षा के लिए न्यूजीलैंड पर निर्भर है. दोनों देशों के बीच एक मित्र संधि है, जिसके तहत न्यूजीलैंड जरूरत पड़ने पर समोआ की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

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    निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

    अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

    खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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  • किचन गार्डन में कैसे उगा सकते हैं किशमिश? आज जान लें बेहद आसान तरीका

    किचन गार्डन में कैसे उगा सकते हैं किशमिश? आज जान लें बेहद आसान तरीका

    किचन गार्डन में ताजगी और स्वाद का आनंद लेने के लिए बहुत लोग फल और सब्जियां उगाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि घर के छोटे गार्डन या बालकनी में किशमिश (Raisins) उगाना भी संभव है? जी हां, थोड़ी मेहनत, धैर्य और सही देखभाल से आप अपने घर में ही अंगूर की बेल लगाकर बाद में किशमिश तैयार कर सकते हैं. आइए जानते हैं इसे आसान तरीके से.

    किशमिश अंगूर से बनती है, इसलिए पहले अंगूर की बेल लगाने के लिए सही जगह चुनना जरूरी है. अंगूर की बेल को धूप बहुत पसंद है. आपके किचन गार्डन या बालकनी में रोजाना कम से कम 6 से 8 घंटे धूप जरूर आती हो. धूप की कमी होने पर फल कम आएंगे और अंगूर पूरी तरह नहीं पकेंगे.

    मिट्टी और गमला

    अंगूर की बेल हल्की, पोषक तत्वों वाली और जल निकासी वाली मिट्टी में अच्छी तरह उगती है. गमले में बगीचे की मिट्टी, रेत और गोबर की खाद मिलाकर मिश्रण तैयार करें. गमला कम से कम 18-24 इंच गहरा होना चाहिए, ताकि जड़ें फैल सकें.

    पौधा या कटिंग

    आप नर्सरी से अंगूर का पौधा ले सकते हैं या पुराने बेल की कटिंग से नया पौधा तैयार कर सकते हैं. अगर कटिंग लगा रहे हैं, तो लगभग 8-10 इंच लंबी टहनी लें, जिसमें 3-4 कलियाँ हों. इसे मिट्टी में 2-3 इंच तक दबाएं और हल्का पानी दें. 10-15 दिनों में नई कलियाँ निकलने लगेंगी, जिससे पता चलेगा कि पौधा जम चुका है.

    पानी देने का तरीका

    अंगूर की बेल को ज्यादा पानी पसंद नहीं है. मिट्टी हल्की गीली रहनी चाहिए, लेकिन पानी कभी जमा नहीं होना चाहिए. गर्मियों में हर 2-3 दिन में हल्का पानी और सर्दियों में हफ्ते में एक बार पर्याप्त होता है.

    बेल को सहारा देना

    जैसे-जैसे बेल बढ़ती है, उसे ऊपर चढ़ने और फैलने के लिए सहारा देना जरूरी है. आप लकड़ी, जाली या रस्सी का सहारा दे सकते हैं. इससे बेल फैलकर सही दिशा में बढ़ती है और धूप भी सभी हिस्सों तक पहुंचती है.

    खाद और देखभाल

    हर महीने अंगूर की बेल को गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट दें. इससे पौधा हरा-भरा रहेगा और फल मीठे बनेंगे. अगर पत्तियों पर कीड़े लगें, तो नीम के तेल और पानी का हल्का स्प्रे करें. रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल न करें, क्योंकि आप इन्हें खाने वाले हैं.

    फल आने में समय

    अंगूर की बेल को फल देने में 2-3 साल का समय लगता है. पहले साल बेल मजबूत होती है, दूसरे साल फूल आते हैं और तीसरे साल अंगूर पककर तैयार होते हैं. जब अंगूर पूरी तरह पक जाए, तो आप उन्हें सुखाकर किशमिश बना सकते हैं. इसे बनाने के लिए अंगूर को सूरज की रोशनी में सुखाएं या हल्के ओवन में सुखाने का तरीका अपनाएं.

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    रजनी उपाध्याय बीते करीब छह वर्षों से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं. उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाली रजनी ने आगरा विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. बचपन से ही पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि थी और यही रुचि उन्हें मीडिया की दुनिया तक ले आई.

    अपने छह साल के पत्रकारिता सफर में रजनी ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया. उन्होंने न्यूज, एंटरटेनमेंट और एजुकेशन जैसे प्रमुख वर्टिकल्स में अपनी पहचान बनाई. हर विषय में गहराई से उतरना और तथ्यों के साथ-साथ भावनाओं को भी समझना, उनकी पत्रकारिता की खासियत रही है. उनके लिए पत्रकारिता सिर्फ खबरें लिखना नहीं, बल्कि समाज की धड़कन को शब्दों में ढालने की एक कला है.

    रजनी का मानना है कि एक अच्छी स्टोरी सिर्फ हेडलाइन नहीं बनाती, बल्कि पाठकों के दिलों को छूती है. वर्तमान में वे एबीपी लाइव में कार्यरत हैं, जहां वे एजुकेशन और एग्रीकल्चर जैसे अहम सेक्टर्स को कवर कर रही हैं.

    दोनों ही क्षेत्र समाज की बुनियादी जरूरतों से जुड़े हैं और रजनी इन्हें बेहद संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ संभालती हैं. खाली समय में रजनी को संगीत सुनना और किताबें पढ़ना पसंद है. ये न केवल उन्हें मानसिक सुकून देते हैं, बल्कि उनकी रचनात्मकता को भी ऊर्जा प्रदान करते हैं.

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  • आलिया भट्ट के 'भाई' संग रोमांस करेंगी राजेश खन्ना की नातिन, 'स्त्री 2' के मेकर्स की फिल्म से बॉलीवुड डेब्यू

    आलिया भट्ट के 'भाई' संग रोमांस करेंगी राजेश खन्ना की नातिन, 'स्त्री 2' के मेकर्स की फिल्म से बॉलीवुड डेब्यू

    बॉलीवुड के लीजेंड्री एक्टर रहे राजेश खन्ना भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन उनके बच्चों ने उनकी विरासत को संभालकर रखा. सालों तक ट्विंकल खन्ना ने बॉलीवुड फिल्में कीं. वहीं राजेश की दूसरी बेटी रिंकी खन्ना ने भी प्यार में कभी कभी और जिस देश गंगा में रहता है जैसी फिल्मों में काम किया. हालांकि एक वक्त के बाद उनकी दोनों ही बेटियों ने शोबिज से दूरी बना ली. लेकिन अब राजेश खन्ना की नातिन नाओमिका सरण अपने नाना के नक्श-ए-कदम पर चलने के लिए तैयार हैं.

    मिड-डे की रिपोर्ट के मुताबिक नाओमिका सरन बहुत जल्द बॉलीवुड डेब्यू करने जा रही हैं. वो ‘स्त्री 2’ के मेकर्स मैडॉक फिल्म्स की रोमांटिक मूवी के साथ फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने के लिए तैयार हैं. नाओमिका के साथ फिल्म में आलिया भट्ट के ऑन-स्क्रीन भाई वेदांग रैना इश्क फरमाते दिखाई देंगे. इस फिल्म की शूटिंग 2026 के मिड तक शुरू हो सकती है.

    एक साल से एक्टिंग की ट्रेनिंग ले रहीं नाओमिका सरन
    रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा है- ‘नाओमिका पिछले एक साल से एक्टिंग और डांस वर्कशॉप्स में ट्रेनिंग ले रही हैं. दिनेश और उनकी टीम इस बात को लेकर स्पष्ट थी कि जब तक वह पूरी तरह से तैयार नहीं हो जातीं, तब तक वे उनके डेब्यू की घोषणा नहीं करना चाहते. वेदांग और नाओमिका की केमिस्ट्री बहुत अच्छी है. जब टीम ने उन्हें साथ देखा, तो उन्हें तुरंत पसंद आ गए. वेदांग इस समय इम्तियाज अली की फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं और उसके बाद इस फिल्म की ओर रुख करेंगे.’

    वेदांग रैना का फिल्मी करियर
    बता दें कि नाओमिका सरन को अक्सर ट्विंकल खन्ना और अक्षय कुमार के बच्चों के साथ एंजॉय करते देखा जाता है. वहीं वेदांग रैना की बात करें तो उन्होंने 2023 में रिलीज हुई फिल्म ‘द आर्चीज’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था. ये फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई थी. इसके बाद वो 2024 की एक्शन-थ्रिलर फिल्म ‘जिगरा’ में बड़े पर्दे पर दिखाई दिए. इस फिल्म में उन्होंने आलिया भट्ट के भाई का किरदार अदा किया था.

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