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अर्घ्य सेनगुप्ता और स्वप्निल त्रिपाठी का कॉलम:हमारा संविधान सबके मिले-जुले सहयोग का परिणाम था

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14 मिनट पहले
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अर्घ्य सेनगुप्ता स्वप्निल त्रिपाठी विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के पदाधिकारी

भारत के संविधान ने हाल ही में 75 वर्ष पूरे किए। यह अवसर हमारे संविधान-निर्माताओं की दूरदर्शिता और संविधान के अद्भुत स्थायित्व का प्रतीक है। परंतु जो वर्ष इस साझा दृष्टि का उत्सव होना चाहिए था, वह विवाद में बदल गया- आम्बेडकर बनाम राव : कौन है संविधान का असली निर्माता? आज की अनेक चर्चाओं की तरह यह विमर्श भी कुछ हद तक पक्षपाती और अनावश्यक रूप से विवादास्पद है। डॉ. भीमराव आम्बेडकर को संविधान का प्रमुख शिल्पकार माना जाता रहा है, किंतु इस बहस ने फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि क्या संविधान-निर्माण को वास्तव में किसी एक व्यक्ति तक सीमित किया जा सकता है?

मध्य प्रदेश में कुछ समय पहले जब संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बी.एन. राव के पोस्टर लगाए गए, तो राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए। कुछ नेताओं ने कहा कि राव को संविधान का वास्तविक निर्माता बताने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे डॉ. आम्बेडकर के योगदान को कम किया जा सके।

सितंबर तक यह विवाद इस सवाल तक पहुंच गया कि ग्वालियर में आम्बेडकर और राव की प्रतिमाएं साथ लगनी चाहिए या नहीं। इस विवाद के केंद्र में केवल राजनीति नहीं, बल्कि हमारी स्मृति का संकट है- हम संविधान-निर्माण को किस दृष्टि से याद करते हैं। एक वरिष्ठ राजनेता का यह कहना कि राव तो केवल सलाहकार थे, संविधान सभा के सदस्य नहीं- न केवल जानकारी की कमी को दर्शाता है, बल्कि उस सामूहिक प्रक्रिया का भी अनादर करता है, जिसमें हर व्यक्ति की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी।

कानूनी और शैक्षणिक जगत के बाहर बहुत कम लोग बी.एन. राव को जानते हैं। सर बेनेगल नरसिंह राव भारत के संवैधानिक इतिहास के उन असाधारण व्यक्तित्वों में थे, जिनकी बुद्धिमत्ता और निष्ठा ने हमारे गणराज्य की रूपरेखा गढ़ी। मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज और इंग्लैंड के ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से शिक्षित राव अंग्रेजी, संस्कृत और गणित के विद्वान थे तथा प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया था।

जब 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ, तो उन्हें संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया। यह भूमिका उन्होंने नि:शुल्क निभाई। राव ने संविधान का प्रारंभिक मसौदा तैयार किया, जिसमें 240 अनुच्छेद, 25 भाग और 13 अनुसूचियां थीं। यही मसौदा आगे संविधान सभा की चर्चाओं और संशोधनों का आधार बना। राव का कार्य करने का तरीका विचारशील और समावेशी था। उन्होंने संविधान सभा के सदस्यों से शासन-प्रणाली, राष्ट्रपति की भूमिका व संशोधन प्रक्रिया जैसे मुद्दों पर प्रश्नावली के माध्यम से विचार मांगे, ताकि मसौदा सामूहिक दृष्टिकोण को दर्शाए।

संविधान सभा ने जब राव का मसौदा प्राप्त किया, तो उसे जांचने और संशोधित करने का कार्य आम्बेडकर की अध्यक्षता वाली ड्राफ्टिंग कमेटी को सौंपा गया। समिति ने राव के प्रारूप की गहराई से समीक्षा कर कई संशोधन किए और उसे वह रूप दिया जिसे अंततः संविधान सभा ने पारित किया। आम्बेडकर ने अपने विधिक कौशल, प्रभावशाली व्यक्तित्व और कुशल संवाद-क्षमता के माध्यम से संविधान सभा में सहमति निर्मित की।

उनके विचारों में उस समय की राजनीतिक वास्तविकता के साथ-साथ सामाजिक न्याय की गहरी समझ थी। उन्होंने विभाजन के बाद के दौर में एक मजबूत राज्य की वकालत की, जो व्यवस्था बनाए रखे और समाज में व्याप्त भेदभाव को दूर कर सके। इस सोच को संविधान सभा में व्यापक समर्थन मिला, क्योंकि अधिकांश सदस्य मानते थे कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने वाला एक राज्य ही एकता और समानता की रक्षा कर सकता है।

राव ने कभी व्यक्तिगत श्रेय की आकांक्षा नहीं रखी। उनके निधन के बाद संसद ने अपने नियमों को तोड़कर एक ऐसे व्यक्ति के प्रति श्रद्धांजलि दी जो स्वयं कभी संसद का सदस्य नहीं रहा। इससे स्पष्ट होता है कि भले ही राव संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, पर संविधान-निर्माण में उनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण था।

दरअसल यह विवाद उस प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है, जिसमें हम संविधान निर्माण को दो व्यक्तियों या धड़ों की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखते हैं- कभी नेहरू बनाम पटेल, तो कभी आम्बेडकर बनाम राव। जबकि संविधान का निर्माण सामूहिक श्रम और विचार-विमर्श की उपज थी।

संविधान सभा के अंतिम सत्र में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने जहां आम्बेडकर को ड्राफ्टिंग कमेटी के कुशल नेतृत्व के लिए धन्यवाद दिया, वहीं नेहरू व पटेल की भूमिका को भी स्वीकारा। इसी क्रम में आम्बेडकर ने अपने अंतिम भाषण में माना कि संविधान के प्रारूप में राव की दक्षता और परिश्रम निर्णायक रहे थे।

संविधान-निर्माण की प्रक्रिया एक लम्बी क्रिकेट पारी जैसी थी- राव और प्रसाद ने मजबूत शुरुआत की, आम्बेडकर ने मध्य ओवरों में धैर्य और कौशल से पारी को संभाला और नेहरू तथा पटेल ने टीम को लक्ष्य तक पहंुचाया।

(ये लेखकों के अपने विचार हैं)

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