शीला भट्ट का कॉलम:क्या भारत सच में ही रूसी तेल का आयात रोक देगा?
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ट्रम्प बदला लेने पर आमादा हैं। वे इस गुमान में हैं ‘दुनिया मेरे हुक्म पर चलती है’ वाली उनकी धौंस-डपट वाली छवि से उन्हें अमेरिका में भी लगातार समर्थन मिलता रहेगा। इसी का नतीजा है कि वे ऐसे अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी ‘क्रेडिट’ लेने की फिराक में हैं, जिनमें से बहुतेरों का उनसे कोई लेना-देना नहीं।
ट्रम्प मोदी से यह सर्टिफिकेट चाहते थे कि भारत-पाकिस्तान युद्ध को रुकवाने में उनके प्रयास ही कारगर रहे थे। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में अपनी भूमिका को लेकर अब तक 50 से ज्यादा डींगों के बावजूद वे मोदी को एक बार भी उकसा नहीं सके। उलटे भारत ने दोटूक कह दिया कि पाकिस्तान से निपटने के लिए उसे किसी की मध्यस्थता मंजूर नहीं है। तभी से ट्रम्प मुंह फुलाए हुए हैं। अब उन्होंने रूसी तेल का मुद्दा उठा लिया है। रूस से सस्ता तेल खरीदने के लिए उन्होंने भारत पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगा दिया। इसी के चलते भारत-अमेरिका ट्रेड डील नहीं हो पाई।
भारत अमेरिका से द्विपक्षीय संबंधों की अहमियत जानता है, इसीलिए सावधानी बरत रहा है। वो अमेरिका से कह चुका है कि सिर्फ बाजार की बाध्यताएं ही उसे रूस से तेल की खरीद बंद करने या घटाने के लिए प्रभावित कर सकती हैं, कोई और नहीं। ट्रम्प की धमकी के बावजूद इस अक्टूबर में ही भारत ने रूस से प्रतिदिन लगभग 1.8 मिलियन बैरल तेल खरीदा। लेकिन अब तेल व्यापार में जमीनी हकीकत बदल रही है।
बेशक, ट्रम्प इसका भी श्रेय लेने के लिए कूदेंगे, लेकिन सच तो यह है कि अमेरिका के कुछ रणनीतिक कदमों के चलते पूरी दुनिया में ही रूसी तेल का परिवहन कठिन हो गया है। अमेरिका ने रूसी तेल सप्लायर कंपनी रोसनेफ्ट और लुकोइल के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है।
भारत रूस से अपना 60% तेल इन दोनों कंपनियों से ही आयात करता है। बदले हालात में यदि रूसी तेल सस्ता नहीं रहेगा तो जाहिर है कि भारत विकल्प तलाशेगा। गौरतलब है कि इराक का तेल अभी रूस से सस्ता है। भारत के लिए मुद्दा यह नहीं है कि वह कहां से तेल खरीद रहा है, बात है कीमत की। तेल यदि सस्ता मिलेगा तो भारत और रिलायंस जैसी कंपनियां चीन से भी खरीद सकती हैं।
यूक्रेन पर हमले के बाद 2022 में रूस ने अपनी वॉर मशीन चलाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय कीमतों से सस्ता तेल ऑफर किया था। भारत ने मौके का फायदा उठाया। इससे पहले लंबी दूरी और ऊंची शिपिंग लागत के कारण भारत रूस से तेल नहीं खरीदता था। रूस से सस्ता तेल एक आकर्षक धंधा था। 2024 में भारतीय कंपनियों ने रूस से 69 अरब डॉलर मूल्य का कच्चा तेल आयात किया था।
भारत सरकार के सूत्रों का दावा है कि ‘यदि अमेरिकी प्रतिबंधों की परवाह किए बिना भारत रूस से तेल की खरीद जारी रखना चाहता है, तब भी भारतीय कंपनियों के लिए उतनी ही मात्रा में तेल खरीदना मुश्किल होगा। अमेरिकी दबाव के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल परिवहन का सपोर्ट सिस्टम काम नहीं करेगा, क्योंकि ये अधिकतर कंपनियां यूरोप में हैं।’ तेल परिवहन का बीमा करने वाली कई इंश्योरेंस कंपनियां भी लंदन में हैं।
अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बाद ये बीमा कंपनियां इसे लेकर सख्त हैं कि प्रतिबंधित रूसी तेल की शिपिंग को बीमा कवर नहीं मिले। जो आयातक अमेरिकी प्रतिबंधों की अनदेखी करेंगे उन्हें कंपनी के लिए फाइनेंसिंग में कठिनाइयां झेलनी पड़ेंगी। जब कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक थी तो रूस ने भारत को अच्छी-खासी रियायत दी थी, लेकिन आज यह कीमत 57 से 61 डॉलर के आसपास है। इसलिए रूस ज्यादा छूट नहीं दे सकता।
क्या भारत रूसी तेल का आयात पूरी तरह रोक देगा? ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। गौर करने वाली बात यह है कि ट्रम्प ने ये प्रतिबंध रूसी तेल उत्पादों पर नहीं, तेल कंपनियों पर लगाए हैं। रूस और आयातक कंपनियां तेल आयात के नए तरीके ढूंढ लेंगी। तेल व्यापार में ऑपरेटरों को ऐसी खामियां पता होती हैं, जिनसे उनका तेल खरीदारों तक पहुंचाया जा सके।
अमेरिका तेल आयात के मामले में ब्रिटेन और जर्मनी को रियायत देने की सोच रहा है, लेकिन भारत पर सख्ती कर रहा है। इसीलिए पीयूष गोयल ने कहा था कि ‘भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?’ यदि रूसी तेल बाजार में नहीं आता है तो तेल कीमतों में उछाल आएगा और इसका कई अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। प्रतिबंधों का विरोध होगा, जो अमेरिका के लिए भी ठीक नहीं। इस वक्त अमेरिका के पास पर्याप्त तेल नहीं है, जो निर्यात के लिए तैयार हो। लेकिन तेल के बाजार में धंधा करने के कई सारे तरीके हैं। ट्रम्प अकेले नहीं हैं, जो धंधा करना जानते हों!
ट्रम्प ने रूसी तेल उत्पादों पर नहीं, तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। रूस और आयातक कंपनियां तेल आयात के नए तरीके ढूंढ लेंगी। व्यापार में ऑपरेटरों को ऐसी खामियां पता होती हैं, जिनसे उनका तेल खरीदारों तक पहुंचाया जा सके।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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