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    चेतन भगत का कॉलम:आत्मसम्मान की कीमत पर कोई भी सौदा मंजूर नहीं है

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    • Chetan Bhagat’s Column: No Deal Is Acceptable At The Cost Of Self respect

    1 घंटे पहले
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    चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार

    किसी देश के साथ ट्रेड-डील करना अरेंज्ड मैरिज जैसा पेचीदा मामला होता है! फिलहाल हम अमेरिका के साथ व्यापार के लिए बातचीत कर रहे हैं। भारत को मिले-जुले संकेत मिल रहे हैं। एक तरफ, हमें टैरिफ की धौंस दिखाई जा रही है, जिससे व्यापार की संभावनाएं खत्म हो रही हैं।

    दूसरी तरफ, दोनों देश एक-दूसरे तक पहुंच बनाने की भी कोशिशें कर रहे हैं- उच्च-स्तरीय फोन कॉल्स से लेकर भविष्य के संबंधों के लिए आशाएं जताई जाने तक। अमेरिका रिश्ते कायम रखने के साथ ही अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।

    ये सच है कि हमें अमेरिका के साथ अच्छे व्यापारिक संबंधों की जरूरत है। वह दुनिया का सबसे ताकतवर देश होने के साथ ही सबसे बड़ा उपभोक्ता-बाजार भी है। अमेरिका से घनिष्ठ व्यापारिक संबंध हमारी अर्थव्यवस्था, जीडीपी और रोजगार में मदद करते हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि यह रिश्ता बने। हालांकि किसी भी अरेंज्ड मैरिज या ट्रेड-डील की तरह हमें कई बातों का भी ध्यान रखना होगा।

    दोनों पक्षों के बीच विवाद के कई बिंदु हैं, जिन्हें दो श्रेणियों में रखा जा सकता है। पहली श्रेणी विशुद्ध रूप से व्यापार, व्यवसाय और सांख्यिकी से संबंधित हैं- हम उनसे जो टैरिफ वसूलते हैं बनाम वे हमसे जो टैरिफ वसूलते हैं। इस सूची में प्रमुख विषय कृषि वस्तुएं, दवाइयां, इलेक्ट्रॉनिक्स, बौद्धिक संपदा नियम, डेटा स्थानीयकरण नीतियां और भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग केंद्र के रूप में मान्यता देना हैं।

    इन तमाम मुद्दों को सुलझाना चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। भारत कुछ टैरिफ कम कर सकता है और कुछ क्षेत्रों में रियायतें दे सकता है, और बदले में उसे भी कुछ रियायतें भी मिल सकती हैं। लेकिन दूसरी श्रेणी के मुद्दों को सुलझाना ज्यादा मुश्किल है- ये भू-राजनीति और सम्प्रभुता से जुड़े मुद्दे हैं, जिनमें अमेरिका भारत पर एक खास रुख थोपने को आतुर दिखाई देता है।

    इनमें भी दो बड़े मुद्दे हैं : 1) भारत द्वारा रूसी तेल खरीदना, जिसका अमेरिका विरोध करता है क्योंकि वह यूक्रेन का समर्थन करता है और 2) यह अपेक्षा कि भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका की कथित मध्यस्थता को भारत स्वीकार करते हुए उसके प्रति आभार जताए।

    इन मुद्दों का ट्रेड, ड्यूटी, टैरिफ या लेवी से कोई लेना-देना नहीं है। ये लगभग नए जमाने की वोक-संस्कृति जैसे मसले हैं, जिसमें एक पक्ष दूसरे पर किसी को कैंसल करने का दबाव बनाता है। मसलन, रूस को कैंसल करें क्योंकि हमें यह पसंद नहीं कि उसने यूक्रेन पर धावा बोला।

    यह तो वही बात हुई कि कोई हाई-प्रोफाइल और अमीर परिवार किसी दूसरे परिवार के साथ शादी का रिश्ता तय करने आए, लेकिन यह शर्त लगा दे कि वह किसी तीसरे ​​परिवार से अपनी पुरानी दोस्ती तोड़ दे, क्योंकि उसने किसी चौथे ​​परिवार के साथ कुछ बुरा किया था! इसकी क्या तुक है?

    भारत, अमेरिका के साथ रिश्ते कायम रखने की चाहे जितनी कोशिशें क्यों ना करे, लेकिन उसकी यह शर्त कि हम रूस से रिश्ते तोड़ दें, एक बुनियादी चीज को कमजोर करती है- और वह है एक सम्प्रभु देश के रूप में हमारी स्वायत्तता। दुनिया का कोई भी देश ऐसी शर्तों से कैसे सहमत हो सकता है?

    इसी तरह, भारत-पाकिस्तान मामले में मध्यस्थता का अनुचित दावा भी हमारी स्वतंत्रता में दखलंदाजी है। हम ऐसा कैसे होने दे सकते हैं? याद कीजिए, आखिरी बार कब किसी देश ने अपनी आजादी की कीमत पर कोई ट्रेड-डील की थी?

    इसलिए कोई रिश्ता चाहे कितना भी अच्छा क्यों ना हो या कोई व्यापारिक समझौता कितना भी फायदेमंद क्यों ना लगता हो, कुछ लक्ष्मण-रेखाएं तो खींचनी ही पड़ती हैं। रिश्ते- चाहे वे व्यक्तिगत हों या दो देशों के बीच- जटिल ही होते हैं। व्यापारिक समझौतों के साथ निजी संबंधों के एजेंडे को मिलाने से कभी भी अच्छे नतीजे नहीं निकल सकते हैं।

    दुनिया में कोई भी देश अमेरिका से ज्यादा रचनात्मक, इनोवेटिव, आर्थिक रूप से चतुर, स्वतंत्र और शक्तिशाली नहीं है। वह हमारे जैसा ही लोकतंत्र भी है, और हम उसके स्वाभाविक सहयोगी हैं। हम उसके साथ व्यापार करना पसंद करेंगे, भले इसके लिए हमें अपने कुछ लाभ छोड़ने पड़ें। लेकिन ऐसा हम अपनी सम्प्रभु स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं कर सकते। आत्मसम्मान की कीमत पर कोई भी सौदा या रिश्ता मंजूर नहीं है।

    अमेरिका हमारे जैसा ही लोकतांत्रिक देश है, और हम उसके स्वाभाविक सहयोगी हैं। हम यकीनन उसके साथ व्यापार करना पसंद करेंगे, भले इसके लिए हमें अपने कुछ लाभ छोड़ने पड़ें। लेकिन ऐसा हम अपनी सम्प्रभु स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं कर सकते।

    (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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  • पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हम अवतारों से सीखें

    पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हम अवतारों से सीखें

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    • Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Let Us Learn From The Incarnations To Achieve Our Goals

    1 घंटे पहले
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    पं. विजयशंकर मेहता

    हर मनुष्य की निर्णय लेने की अपनी क्षमता होती है। लेकिन फिर भी कई बार समझदार लोग सही निर्णय लेने में चूक जाते हैं या उसमें विलम्ब कर जाते हैं। निर्णय कब, कैसे, क्यों लिया जाए, वो प्रभावशाली हो, भविष्य के लिए निर्दोष हो, ये समझना हो तो अवतारों की व्यवस्था को समझा जाए।

    हमारे धर्म में, संस्कृति में कई अवतार हुए। और यदि उनकी कथा को ठीक से जानें तो निर्णय लेने की क्षमता के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। पहली बात तो यह है कि अवतार बनने की कोशिश न करें, अवतारों से सीखने की कोशिश करें। क्योंकि जब अवतार निर्णय लेते हैं- फिर वो राम हों या कृष्ण या अन्य- उनकी सजगता अद्भुत है।

    नो-पेंडेंसी अवतारों की विशेषता है। वे आलस्य-रहित होते हैं और किसी भी कार्य को विलम्बित नहीं करते। अब ऐसा समय आ गया कि केवल ह्यूमन इंट्यूशन से काम नहीं हो सकता, डेटा एनालिसिस का भी वक्त है। तो इन दोनों का समन्वय किया जाए। हर अवतार ने अपने समय के विज्ञान का अच्छा उपयोग किया है। हर अवतार के पीछे एक उद्देश्य है। हम भी निरुद्देश्य न जीएं।

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  • नवनीत गुर्जर का कॉलम:अपने ही हाथों खुद गुलाम होने की कहानी…

    नवनीत गुर्जर का कॉलम:अपने ही हाथों खुद गुलाम होने की कहानी…

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    • Navneet Gurjar’s Column The Story Of Becoming A Slave By One’s Own Hands…

    5 मिनट पहले
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    नवनीत गुर्जर

    मैं देश हूं! भारत हूं! चूंकि पिछले बारह वर्षों से चुनावी मोड में रहने वाले देश में फिलहाल फिर चुनाव हैं, इसलिए समझ लीजिए मैं बिहार हूं! बहुत गुजरा है वक्त ऐसे ही और बह चुका है गंगा में बहुत पानी। इतने समय में। इतनी राह तकते।

    वो जिसका बीज नहीं था, पेड़ वो भी पल गया आखिर! मुझे तो अजनबी समझा था मिट्टी ने। हवा ने पीठ कर ली थी। फकत एक आसमां था बेकरार, सारे बिहार पर बरसता रहा और लोग तरसते रहे, तड़पते रहे, किसी सड़क के किनारे अस्थाई घर बांधकर या झोपड़ी बनाकर।

    हर तरफ छेद थे छत में! उन्हीं छेदों में से घुसकर वो जालिम हवा, कभी उनकी खिचड़ी को ठंडा कर जाती थी!

    आसमां से गिरते आंसू, इन छेदों से इतने टपकते थे कि कभी उनके आलुओं की तरी बन जाती थी, तो कभी उनकी रोटियां लुग्दीनुमा हो जाती थीं। भीगे हुए बिस्तर पर जबरन सुला दिए गए नंगे बच्चे अब भी पूरे शरीर में चुभन महसूस करते हैं!

    पर किसे ​फिक्र है? कौन सुध लेता है? सबके सब वोटों की दुहाई देते फिरते हैं। सबको कुर्सी चाहिए। सबको अपनी किस्मत चमकानी है, हमारी किस्मत फोड़कर। हमारे करम की चौरासी करके…। उन टपकती छतों वाली झोपड़ियों में बैठे लोगों को तो यह भी पता नहीं चल पाता कि कब रात हुई और कब सुबह? आखिर, जब तक सियासतदानों का, नेताओं का हुक्म न आए, कोई कैसे मान सकता है कि सुबह हो गई। पौ फट गई।

    लोगों के लिए ये सफर छोटा नहीं, वर्षों का है। सदियों का है। वे हर घंटे, हर बरस से गुजरे हैं, एक पूरी उम्र देकर। बहुत से नर्म चेहरे जो जवां थे, उनपर झुर्रियां पड़ गई हैं। जो खाली पेट थे, वे पीठ के बल रेंग रहे हैं। रेंगते रहेंगे यूं ही, जब तक चुनाव हैं। झूठे वादे हैं और मक्कार नेता।

    उन आम लोगों की चमड़ी मोटी और सख्त हो चुकी है। इसलिए नहीं कि वे पहाड़ चढ़ते हैं, बल्कि इसलिए कि वे मजबूर हैं। मजदूर हैं। वक्त का बोझ उठाकर चलते हैं। औजारों से भी ज्यादा खर्च हो चुके हैं। …ऊपर से चुनाव आ गया और साथ लाया एक चुनाव आयोग, जिसने न किसी का आधार माना और न ही किसी की बात। पूरे वक्त अपनी ही चलाता रहा।

    जीत आखिर उसी की होनी थी। हुई भी।

    सड़क किनारे डेरा डाले उन लोगों को किसी ने बांग्लादेशी बताया, किसी ने घुसपैठिया कहा। लेकिन लोगों ने बुरा नहीं माना। मान भी लेते तो क्या कर लेते? बहरहाल, आज दूसरे और आखिरी चरण की नाम वापसी होनी है। बिहार विधानसभा की तमाम सीटों पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

    चुनाव बाद परिणाम क्या होंगे, यह कहना तो अभी ठीक नहीं होगा लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि जिस खेमे में ज्यादा बिखराव दिखाई दे रहा है, वो शायद नुकसान में रहेगा।

    बस, इतने संकेत भर से समझने वाले समझ जाएंगे कि राज्य में किसकी जीत की संभावना ज्यादा है और कौन पराजय के गर्त में जाने वाला है। वैसे भी फौलाद के बूट होते हैं सियासतदानों के, चींटियों का रोना आखिर किसने सुना है!

    हाथ हमेशा साफ होते हैं नेताओं के। खून के धब्बे धुल जाते हैं साबुन से या वाशिंग मशीन में। आम आदमी तो जमीन पर रहता है गेहूं की तरह और दफ्न किया जाता है पेड़ों की तरह। फूंक दिया जाता है तनों को। अश्वमेध की कुर्बानी हर दौर में होती है। हर चुनाव में होती है। शायद होती ही रहेगी।

    खैर, बिहार में टिकटों का दौर गुजर चुका है। किसी पर टिकट बेचने का दाग लगा। किसी पर अपनों को ही टिकट देने का आरोप लगा। कोई टिकट न मिलने पर बागी हो गया तो किसी ने पत्नी, बेटे या बेटी को चुनाव मैदान में उतारकर ताल ठोक दी। अपनी ही पार्टी के आगे। अपने ही नेता के सामने!

    कई पर कई तरह के आरोप लगे। उनके उसी तरह के जवाब भी सामने आए। इन आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर अब बीत चुका है। अब वक्त है प्रचार का। ऐसे वादे करने का जो वर्षों से पूरे नहीं हो सके। सालों से पूरे नहीं किए जा सके।

    सिवाय हर पांच साल में उन्हीं वादों को अलग- अलग तरीकों से दोहराने के। वही दोहराए जाएंगे। बड़ी शान से।

    टिकट बेचने के दाग से अपनों को टिकट देने के आरोप तक टिकटों का दौर गुजर चुका है। किसी पर टिकट बेचने का दाग लगा। किसी पर अपनों को ही टिकट देने का आरोप लगा। कोई टिकट न मिलने पर बागी हो गया तो किसी ने पत्नी, बेटे या बेटी को चुनाव मैदान में उतारकर ताल ठोक दी।

    बड़े ऐतबार के साथ! नेताओं की चलती तेज हवा में हमें झुकानी पड़ेगी अपनी राय। वे हमारी भावनाओं पर कोड़े बरसाते रहेंगे और हम चुपचाप सहन करते रहेंगे।

    सहते रहेंगे, उनकी मार। चीखती रहेंगी अंधेरे की गरारियां। और हम फिर हो जाएंगे पांच साल के गुलाम।

    अपने ही हाथों। अपने ही कर्मों से!

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  • एन. रघुरामन का कॉलम:बुजुर्गों को मिले मजबूत रिश्तों और वैकल्पिक घर का सहारा

    एन. रघुरामन का कॉलम:बुजुर्गों को मिले मजबूत रिश्तों और वैकल्पिक घर का सहारा

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    • N. Raghuraman’s Column: Elderly People Find Support Through Strong Relationships And Alternative Housing

    5 मिनट पहले
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    एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

    लोगों की उम्र लंबी हुई है और वे सोच रहे हैं कि अब कैसे और कहां रहा जाए। चेन्नई के 89 वर्षीय जे. नारायणन भी अपवाद नहीं हैं। उन्होंने 15 साल पहले ही यह सोच लिया था, जब उनकी पत्नी (अब 84 वर्षीय) बीमारी की वजह से चल-फिर नहीं पा रही थीं। वे अपने बड़े घर में अकेले नहीं रहना चाहते थे।

    इसलिए चेन्नई के पॉश इलाके में, अपनी रिश्तेदार के बंगले में रहने लगे, जहां स्वास्थ्य सेवाएं नजदीक हैं। उन्होंने दूसरी मंजिल पर डेरा डाला, जहां चार बेडरूम, किचन और हॉल था। इससे उन्हें प्राइवेसी मिली, घर की हेल्प के लिए जगह मिली और वहां इमरजेंसी में रिश्तेदार आ सकती थीं। उनकी बेटी की शादी हो चुकी है, बेटा विदेश में रहता है और घर खर्च संभालता है।

    बुढ़ापे में ज्यादातर लोग अपने ही घर में रहना चाहते हैं। आज रखरखाव की बढ़ती कीमतें नहीं, बल्कि स्वास्थ्य समस्याएं अपने घर में रहना मुश्किल बना रही हैं। जिनके पास पैसा है, वे रोजमर्रा के कामों के लिए हेल्प नियुक्त कर रहे हैं। बाकी घर के विकल्प तलाश रहे हैं।

    यह कहना है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की जॉइंट सेंटर फॉर हाउसिंग स्टडीज का, जिसके मुताबिक 2023 में 9,90,000 अमेरिकी हेल्प के साथ या किसी गैर-रिश्तेदार व्यक्ति के साथ रह रहे थे। इसमें 2021 की तुलना में 8.8% बढ़त हुई।

    बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य समस्याओं और लंबी उम्र के विरोधाभास के बीच मुंबई में डेवलपर इंटरजनरेशनल (अंतर-पीढ़ीगत) हाउसिंग कॉम्प्लेक्स बना रहे हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं के नजदीक और शहर के बीच हैं। ये डेवलपर दो फायदे दे रहे हैं। उसी कॉलोनी में पड़ोस की इमारत में युवाओं का निवास और हमउम्र लोगों के साथ समय बिताने के लिए बगीचा।

    एक रियल एस्टेट कंपनी ने 100 एकड़ की टाउनशिप लॉन्च की है, जिसमें 45 में से दो टॉवर बुजुर्गों को समर्पित हैं। इन इमारतों में सर्विस अपार्टमेंट जैसे फायदे मिलेंगे, जैसे अलग से हाउसकीपिंग की सुविधा। इमारत में व्हील चेयर के लिए बड़े दरवाजे होंगे और दीवार के किनारे गोल रहेंगे ताकि चोट न लगे।

    घर में या कम्युनिटी हॉल में, घर का बना खाना भी मिलेगा। डेवलपर, बुजुर्गों को यह अहसास देना चाहते हैं कि वे अपने शहर से अलग नहीं होंगे। पश्चिमी देशों में 20% हाउसिंग मार्केट, सीनियर सिटीजन की जरूरतें पूरी करता है।

    बुजुर्गों को सस्ते और सुविधाजनक घर देने के लिए, महाराष्ट्र सरकार की प्रस्तावित हाउसिंग पॉलिसी 2025 में करों में कटौती का सुझाव है। इसके तहत, सहायता वाले घर खरीदने पर, बुजुर्गों को 5-7% स्टाम्प ड्यूटी की जगह, सिर्फ 1000 रुपए देने होंगे।

    मुंबई में ऐसी बड़ी आबादी है, जिनके बच्चे उनसे दूर रहते हैं। मेरे सहकर्मी, विजय शंकर मेहता के मुताबिक कई अमीर बेबी बूमर्स (1946 से 1964 के बीच जन्मे) 6 गलतियां करते हैं। वे कहते हैं कि लोग पहले काम में ‘व्यस्त’ रहते हैं, ‘मस्त’ जीवन जीते हैं, फिर बुढ़ापे और दूर के रिश्तों से ‘त्रस्त’ हो जाते हैं, इसलिए उनमें से कुछ को वे ‘निरस्त’ कर देते हैं, तकनीक में उलझी आबादी ‘सुस्त’ हो जाती है और अंततः कुछ रिश्ते ‘अस्त’ हो जाते हैं।

    लेकिन नारायणन जैसे लोगों ने दोनों ही काम संभाले, उन्होंने कई लोगों से रिश्ते बनाए रखे और सही समय पर “वैकल्पिक आवास’ तलाशा। पश्चिमी देशों में यह अब लोकप्रिय हो रहा है और मुंबई जैसे शहरों में भी शुरुआत हो गई है।

    2030 के बाद, दुनिया में और भी विकल्प सामने आएंगे, क्योंकि बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है। इससे पहले कि यह महंगा हो जाए, नारायणन की तरह, अपने शहर में रहने के लिए जल्द कदम उठाएं।

    फंडा यह है कि अगर आप बुजुर्ग हैं या बुजुर्ग होती आबादी का हिस्सा हैं, तो अपने रिश्तों को मजबूत बनाएं और जल्द से जल्द वैकल्पिक घर तलाशना शुरू कर दें।

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  • छठ पर घर जाने की जद्दोजहद: ट्रेन की जनरल बोगी में एक के ऊपर एक ठूंसकर जा रहे यात्री, रेलवे के विशेष इंतजाम पर हावी परेशानी

    छठ पर घर जाने की जद्दोजहद: ट्रेन की जनरल बोगी में एक के ऊपर एक ठूंसकर जा रहे यात्री, रेलवे के विशेष इंतजाम पर हावी परेशानी

    छठ पूजा के लिए इस साल भारतीय रेलवे ने हजारों विशेष ट्रेनें चलाई हैं. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर देखने पर सब व्यवस्थित लगता है कि यात्रियों के लिए टेंट लगाए गए हैं, रिजर्वेशन और जनरल बोगी वालों को अलग-अलग लाइनों में प्रवेश कराया जा रहा है ताकि स्टेशन पर भीड़ ना हो, यात्रियों के वेटिंग एरिया को व्यवस्थित किया गया है, हर तरफ आरपीएफ के जवान भी मौजूद हैं. पहली नजर में सबकुछ नियंत्रण में दिखता है, लेकिन असल खराब हालत और खस्ता व्यवस्था ट्रेन के भीतर और खासतौर से जनरल बोगी में दिख रही है. जहां दरवाजा खुलवाने के लिए धक्का-मुक्की, भीतर जाने के लिए लड़ाई और एक जगह से दूसरी जगह जाने तक की जगह नहीं है.

    छठ पूजा के लिए पूरे भारत से लोग बिहार की तरफ जा रहे हैं, भारतीय रेलवे का दावा है कि सब बढ़िया है, हजारों ट्रेन चलाई जा चुकी हैं लेकिन ट्रेन की जनरल बोगी भारतीय रेलवे के सब बढ़िया है वाले दावे की पोल खोल रही है. आज एबीपी न्यूज की टीम बिहार की तरफ जाने वाली ट्रेनों की असल हालत जानने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गाजियाबाद स्टेशन तक श्रमजीवी सुपरफास्ट एक्सप्रेस (1292) की जनरल बोगी का टिकट लेकर सफर किया और नतीजा सामने आया कि जनरल बोगी में लोग ऐसे ठूंसकर भरे हुए हैं जैसे ट्रक में भेड़ और बकरियों को भरा जाता है. ये भेड़-बकरी वाली लाइन हमारी नहीं है बल्कि ट्रेन में दिल्ली से पटना तक यात्रा करने वाले यात्री असलाउद्दीन ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा कि मजबूरी है घर जाना है. लेकिन व्यवस्था के नाम पर जनरल बोगी में एक के ऊपर एक व्यक्ति को ऐसे ठूंसकर भरा गया है जैसे कोई भेड़-बकरी हो.

    श्रमजीवी एक्सप्रेस में खचाखच भरे यात्री, पैर रखने तक की जगह नहीं

    श्रमजीवी सुपरफास्ट एक्सप्रेस नई दिल्ली से यूपी के बरेली, लखनऊ, बनारस होते हुए बिहार के पटना, नालंदा होते हुए राजगीर तक जाती है और पूरा सफर 21 घंटे से ज्यादा का कम से कम होता है. लेकिन जनरल बोगी में लोग एक के ऊपर लदे हुए हैं. जिस सीट पर तीन लोग मुश्किल से बैठते हैं ऊपर और नीचे वाली सीट पर वहां हर सीट पर 5 से 6 लोग बैठे हैं. नीचे खाली जगह पर लोग चिपक-चिपककर बैठे हैं और दोनों लोगो के बीच में जहां सिर्फ थोड़ी-सी जगह है, वहां लोग खड़े हैं.

    हालत इतनी खराब है कि जनरल बोगी पर खिड़की के पास की चेयर वाली सीट पर एक व्यक्ति की गोद में दूसरा व्यक्ति बैठा है. ट्रेन के टॉयलेट के पास दर्जन भर से ज्यादा लोग खड़े हैं और बैठे हुए हैं और ट्रेन के दोनों दरवाजों के बीच के हिस्से में भी इसी तरह ठूंसकर लोग नीचे बैठकर और खड़े होकर जा रहे हैं. बाकी जिसे ना बैठने की जगह मिल रही और ना ही खड़े होने की वो ऊपर की दोनों सीटों पर हवा में लटककर अपने घर की ओर जा रहा है.

    क्या करें मजबूरी है कोई व्यवस्था नहीं पर घर तो जाना है- उदय पासवान

    बिहार से दिल्ली आकर मजदूरी करने वाले उदय पासवान के मुताबिक, जैसे गाय और भैंस को ट्रक-ट्रॉली में लादा जाता है, ठीक वैसे ही उन लोगों को लादा गया है लेकिन करें तो क्या करें मजबूरी है और कोई व्यवस्था नहीं है. जबकि बख्तियारपुर तक जाने वाली महिला यात्री ने एबीपी न्यूज से कहा कि चाहे स्पेशल ट्रेन हो या कोई भी ट्रेन हो, सबका यही हाल है. इस ट्रेन में भी देख लीजिए हम खड़े होकर सफर कर रहे हैं और बच्चे जमीन पर लेटकर सफर कर रहे हैं.

    ट्रेन में यात्रियों की भीड़ खोल रहा रेलवे की व्यवस्था की पोल

    भारतीय रेलवे लगातार यह सफाई दे रहा है कि ट्रेनें में व्यवस्था ठीक है और कुछ लोग पुरानी तस्वीरें शेयर कर विभाग को बदनाम कर रहे हैं. लेकिन हमारी टीम ने जो वीडियो और तस्वीरें रिकॉर्ड कीं उनमें साफ नजर आ रहा है कि बाकी जगहों के अलावा कई यात्री तो दो कोचों के बीच के संकरे रास्ते पर खड़े हैं, बैठने की तो बात ही छोड़ दीजिए. यह हाल श्रमजीवी जैसी ट्रेन का तब है जब इस साल 12 हजार से ज्यादा विशेष ट्रेनें चल रही है.

    ऐसे में अनुमान जताया जा रहा है कि भारतीय रेलवे के अनुमान से भी ज्यादा लोग इस बार छठ मनाने अपने घरों की ओर खासतौर पर बिहार की तरफ जा रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि छठ पूजा में अभी तीन दिन बाकी हैं. साथ ही रेलवे प्लेटफार्मों और जनरल बोगियों में भीड़ और बढ़ने की संभावना है, तो क्या रेलवे यात्रियों की बढ़ती संख्या को संभालने की कोई ठोस रणनीति बनाता है या नहीं.

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  • लेह हिंसा के बाद LAB और KDA ने पहली बार गृह मंत्रालय से की वार्ता, जानें तीन घंटे की बैठक में किन मुद्दों पर हुई चर्चा

    लेह हिंसा के बाद LAB और KDA ने पहली बार गृह मंत्रालय से की वार्ता, जानें तीन घंटे की बैठक में किन मुद्दों पर हुई चर्चा

    केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले में पिछले महीने 24 सितंबर, 2025 को हुई हिंसा के बाद पहली बार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के साथ बातचीत की है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बुधवार (22 अक्टूबर, 2025) को लेह में ही LAB और KDA के सदस्यों के साथ मुलाकात की. लेह में दोनों पक्षों के बीच करीब तीन घंटे की बातचीत चली. जिनमें कई मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा हुई.

    लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बातचीत बेहद सकारात्मक रही. करीब तीन घंटे तक चली बैठक में सरकार ने हमारी मांगों को ध्यान से सुना और उस पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन भी दिया. इसके साथ हमारी ओर से भी सरकार का आश्वस्त किया गया है कि हम प्रदेश में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जो सरकार और प्रशासन के नजर में गलत हो.

    दोनों समूहों के सदस्य बैठक में हुए शामिल

    गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के तीन-तीन सदस्य शामिल हुए थे. इसके साथ लद्दाख के सांसद और KDA के फाउंडर मोहम्मद हनीफा जान और उनके वकील भी बैठक में शामिल हुए थे.

    बैठक में किन मुद्दों पर हुई चर्चा

    LAB और KDA ने कहा कि अधिकारियों के साथ हुई इस बैठक का मुख्य उद्देश्य लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने और संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा देने का रहा. इसके अलावा, हमने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के खिलाफ लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) हटाने और उन्हें जेल से तुरंत रिहाई करने की मांग की. साथ ही 24 सितंबर को हुई हिंसा के बाद लद्दाख पुलिस ने जिन युवाओं को जेल में बंद किया था, हमने उनकी रिहाई की भी मांग को दोहराया है.

    लेह में हटा कर्फ्यू, स्थिति हुई सामान्य

    वहीं, लेह के उपायुक्त रोमिल सिंह डोंक ने कहा कि जिले में अब स्थिति सामान्य हो चुकी है. कर्फ्यू हटा दिया गया है और इंटरनेट को भी फिर से रिस्टोर कर दिया गया है. स्कूल और कॉलेज भी पहले की तरह ही खुल रहे हैं. हालांकि, BNSS की धारा 163 अभी भी लागू है.

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  • जल्द आ रहा 'लाफ्टर शेफ्स सीजन 3', फिर दिखेंगे जन्नत जुबैर, कृष्णा अभिषेक समेत ये सितारे

    जल्द आ रहा 'लाफ्टर शेफ्स सीजन 3', फिर दिखेंगे जन्नत जुबैर, कृष्णा अभिषेक समेत ये सितारे

    टीवी के पॉपुलर कॉमेडी–कुकिंग शो ‘लाफ्टर शेफ्स’ की वापसी होने वाली है. कलर्स ने दिवाली के मौके पर अपने ऑफिशियल इंस्टाग्राम हैंडल से पोस्ट शेयर करते हुए इस बात का खुलासा किया है. अब ‘लाफ्टर शेफ्स सीजन 3’ के अनाउंसमेंट के बाद से ही फैंस के बीच क्रेज बढ़ते देखा जा सकता है. शो में एक बार फिर पुराने कंटेस्टेंट्स लौटने वाले हैं. 

    कलर्स टीवी ने ऑफिशियल अनाउंसमेंट कर दिया है कि ‘लाफ्टर शेफ्स’ अपने ब्रांड न्यू सीजन के साथ टेलीविजन स्क्रीन्स पर वापसी करने वाला है. इस ऑफिशियल अनाउंसमेंट ने फैंस की दिवाली को और भी खास बना दिया है. लेकिन इस बार का सीजन पिछले दो सीजंस से काफी ज्यादा ग्रैंड और काफी इंटरेस्टिंग होने वाला है.

    ‘लाफ्टर शेफ्स सीजन 3’ में क्या कुछ होगा खास? 
    द इंडियन एक्सप्रेस ने चैनल का हवाला देते हुए बताया कि शो में ओजी पार्टिसिपेंट्स की वापसी होगी जिसमें कृष्णा अभिषेक और कश्मीरा शाह के साथ अली गोनी और जन्नत जुबैर का भी नाम शामिल हैं. इसके साथ सीजन 1 और सीजन 2 के कुछ पुराने कंटेस्टेंट भी शो का हिस्सा बनेंगे. तीसरे सीजन को और भी एंगेजिंग और एंटरटेनिंग बनाने के लिए 3-4 नए आर्टिस्ट्स की भी एंट्री होने वाली है. 

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    टीवी स्क्रीन पर कब दस्तक देगा ‘लाफ्टर शेफ्स सीजन 3’?

    रिपोर्ट की मानें तो ‘लाफ्टर शेफ्स सीजन 3’ कलर्स की पॉपुलर रिएलिटी शो ‘पति पत्नी और पंगा’ को रिप्लेस करने वाला है. खबरें ये भी है कि ‘पति पत्नी और पंगा’ के कुछ आर्टिस्ट इस शो को जॉइन करेंगे. बता दें कि ‘लाफ्टर शेफ्स’ को बतौर फिलर रिलीज किया गया था इसलिए सीजन 1 में कोई विनर सामने नहीं आया लेकिन सीजन 2 के विनर ट्रॉफी एल्विश यादव और करण कुंद्रा ने उठाई थी. ‘लाफ्टर शेफ्स’ के लगातार दो सीजन के सक्सेस के बाद भारती सिंह के कॉमेडी कुकिंग शो के तीसरे सीजन का प्रीमियर 2025 के आखिर या अगले साल की शुरुआत में होगा.

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  • IND vs AUS 2nd ODI Weather: पर्थ की तरह एडिलेड में भी होगी बारिश? भारत-ऑस्ट्रेलिया दूसरे वनडे की वेदर रिपोर्ट आपको जाननी चाहिए

    IND vs AUS 2nd ODI Weather: पर्थ की तरह एडिलेड में भी होगी बारिश? भारत-ऑस्ट्रेलिया दूसरे वनडे की वेदर रिपोर्ट आपको जाननी चाहिए

    ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरा वनडे भारतीय टीम के लिए करो या मरो वाला है, क्योंकि अगर भारतीय टीम इस मैच को हारी तो ऑस्ट्रेलिया सीरीज में अजेय बढ़त बना लेगी. पर्थ में खेला गया पहला वनडे बारिश के कारण 4 बार रोका गया था, एडिलेड में भी बदल छाए रहेंगे. फोरकास्ट कंडीशन को देखते हुए टॉस महत्वपूर्ण है, इसे जीतकर कप्तान पहले गेंदबाजी करना चाहेंगे. चलिए जानते हैं कि दूसरे वनडे के दौरान एडिलेड का मौसम कैसा रहेगा.

    सबसे पहले टाइम जोन समझते हैं. भारत और एडिलेड के समय में 5 घंटे का अंतर है. लोकल समय में मैच 23, अक्टूबर को दोपहर 2 बजे से शुरू होगा, जबकि भारत में इस समय सुबह के 9 बज रहे होंगे. भारतीय समयनुसार टॉस सुबह 8:30 बजे होगा.

    एडिलेड ओवल में वनडे क्रिकेट की बात करें तो आखिरी बार 17 फरवरी 2008 को यहां टीम इंडिया हारी थी, सामने ऑस्ट्रेलिया थी. उसके बाद से भारत ने इस ग्राउंड पर 5 वनडे खेले, इसमें से 1 मैच टाई हुआ और 4 में भारत जीता. इन 4 में से भारत ने 2 मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीते हैं.

    एडिलेड में बारिश छाए रहेंगे, फोरकास्ट कंडीशन में तेज गेंदबाजों को अधिक मदद मिलेगी. तेज गेंदबाजों को देखें तो भारत के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया के पास ज्यादा अनुभवी खिलाड़ी हैं, उनमे स्टार्क और हेजलवुड हैं. पर्थ में रुक-रुक कर बारिश हो रही थी, इस कारण बार बार मैच रोकना पड़ रहा था. एडिलेड में इसकी संभावना कम है, लेकिन हां बूंदा-बांदी हो सकती है.

    वर्ल्डवेदर के अनुसार लोकल टाइम 2 बजे तापमान 16 डिग्री के आस पास रहेगा. इस समय बारिश की संभावना नहीं है, टॉस समय पर हो जाएगा. मैच समय में बादल छाए रहने की संभावना जताई गई है, मैच के दौरान बूंदा-बांदी भी हो सकती है लेकिन तेज बारिश नहीं बताई गई है. लोकल समय 7 बजे (भारत में दोपहर 2 बजे) बारिश हो सकती है, क्योंकि बादल छाए रहने की संभावना 100 प्रतिशत बताई गई है. इस समय तापमान भी गिरकर 12 डिग्री सेल्सियस के आस पास होने की संभावना है.

    स्टार स्पोर्ट्स.

    जियोहॉटस्टार ऐप और वेबसाइट.

    भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया दूसरे वनडे में एडिलेड ओवल की पिच पर बाउंस देखने को मिल सकता है. इस ग्राउंड पर देखा गया है कि बल्लेबाजों को मदद मिलती है, लेकिन गुरुवार को फोरकास्ट कंडीशन देखते हुए माना जा सकता है कि तेज गेंदबाज महत्वपूर्ण रोल निभाएंगे. पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को कम से कम 300 रन तो स्कोरबोर्ड पर लगाने ही होंगे, इससे कम का स्कोर डिफेंड करना यहां बहुत मुश्किल होगा. 

    📍Adelaide Oval 🏟️#TeamIndia in the zone ahead of the 2⃣nd #AUSvIND ODI 💪 pic.twitter.com/3hPrAZuRY5

    देखना होगा कि क्या भारत की प्लेइंग 11 में कोई बदलाव होता है, क्योंकि पिछले मैच में 3 ऑलराउंडर खिलाने को लेकर काफी आलोचना हुई थी. कुलदीप यादव टीम में हैं, लेकिन वह पहले वनडे में नहीं खेले थे. संभावना है कि दूसरे वनडे में उन्हें मौका मिले.

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  • महाराष्ट्र निकाय चुनाव के लिए महायुति का फॉर्मूला तय, BJP ने लिया बड़ा फैसला

    महाराष्ट्र निकाय चुनाव के लिए महायुति का फॉर्मूला तय, BJP ने लिया बड़ा फैसला

    महाराष्ट्र में आने वाले कुछ महीनों में स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं नगरपालिका और पंचायतों के चुनाव होने जा रहे हैं. इससे पहले अब एक बड़ी खबर सामने आई है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महापालिका चुनाव के लिए महायुति का फॉर्मूला तय हो गया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बारे में अहम जानकारी दी है. राज्य में जल्द ही स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे. लेकिन मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए ये चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके हैं. इसलिए इन चुनावों को लेकर सभी दलों में उत्सुकता है. 

    अब तक यह स्पष्ट नहीं था कि ये चुनाव महायुति भाजपा, शिवसेना, राष्ट्रवादी गुट और महाविकास आघाडी ‘शिवसेना ठाकरे गट, कांग्रेस, राष्ट्रवादी शरद पवार गट ‘ के रूप में लड़े जाएंगे या फिर पार्टियां अपने-अपने दम पर मैदान में उतरेंगी.

    महायुति के वरिष्ठ नेताओं ने दावा किया था कि चुनाव गठबंधन के रूप में ही लड़े जाएंगे, लेकिन कई जगहों पर स्थानीय पदाधिकारी अपने दम पर चुनाव लड़ने का नारा दे रहे थे. कई महानगरपालिकाओं में भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी के कार्यकर्ताओं ने अपने दम पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. 

    ऐसे में यह सवाल उठ रहा था कि क्या तीनों दल साथ लड़ेंगे या अलग-अलग? इसी बीच अब बड़ी खबर आई है. सूत्रों के मुताबिक, महापालिका चुनाव के लिए महायुति का फॉर्मूला तय हो गया है. मुंबई में भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे. वहीं पुणे और पिंपरी-चिंचवड में भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ेगी.

    ठाणे नगर निगम चुनाव को लेकर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है. फडणवीस ने बताया कि ठाणे में एकजुट होकर चुनाव लड़ने की संभवनाएं तलाश की जा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘जहां विरोधियों को फायदा हो सकता है, वहां हम महायुति के रूप में मिलकर लड़ेंगे.’

    इस बीच महाविकास आघाडी की ओर से भी स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया है. दूसरी तरफ राज ठाकरे की मनसे और शिवसेना ठाकरे गुट के बीच संभावित गठबंधन की चर्चा भी तेज है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राज ठाकरे आगामी स्थानीय चुनावों में महाविकास आघाडी के साथ जाएंगे या नहीं.

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  • Artificial Vision Technology: अंधेपन के मरीजों को मिला नया तोहफा, अब फिर से देख पाएंगे सपनों की दुनिया

    Artificial Vision Technology: अंधेपन के मरीजों को मिला नया तोहफा, अब फिर से देख पाएंगे सपनों की दुनिया

    Blindness Cure Technology: कभी-कभी विज्ञान और टेक्नोलॉजी का मिलन ऐसा चमत्कार कर देता है, जो अब तक हमें सिर्फ साइंस फिक्शन फिल्मों में ही देखने को मिलता था. लंदन के Moorfields Eye Hospital और यूरोप के कुछ अन्य मेडिकल सेंटर्स के वैज्ञानिकों ने एक बेहद छोटा फोटोवोल्टाइक माइक्रोचिप बनाया है, जिसे रेटिना के नीचे इम्प्लांट किया जा सकता है. यह चिप आकार में सिर्फ चावल के दाने जितना है, लेकिन इसकी ताकत इतनी है कि इससे कानूनी तौर पर अंधे मरीजों ने फिर से पढ़ना, चेहरों को पहचानना और रोजमर्रा के काम करना शुरू कर दिया है.

    इस क्रांतिकारी तकनीक का नाम है प्राइमा सिस्टम. इसे 38 मरीजों पर इंटरनेशनल ट्रायल के तहत लगाया गया, जिसमें पांच यूरोपीय देशों की टीमें शामिल थीं. यह चिप खास चश्मे के साथ काम करता है, जिनमें लगे कैमरे आंखों तक इंफ्रारेड इमेज भेजते हैं. चिप उन इमेज को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदलकर ऑप्टिक नर्व के ज़रिए दिमाग तक पहुंचाता है. इस तरह मरीज फिर से अक्षर, शब्द और आकृतियों को पहचानने लगते हैं.

    इन लोगों पर हुआ ट्रायल

    70 वर्षीय शीला इरविन, जिनकी सेंटर दिखने की क्षमता 30 साल पहले चली गई थी, उन्होंने इस चिप के बाद पहली बार बिना गलती किए आई चार्ट पर अक्षर पढ़े. BBC के साथ बातचीत में शीला ने कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है कि मानो मेरी पूरी जिंदगी बदल गई है.” शुरुआत में मरीजों को इन इमेज को समझने के लिए ट्रेनिंग दिया जाता है, ताकि दिमाग नए विजुअल इनपुट को प्रोसेस करना सीख सके.

    हर अंधेपन का इलाज नहीं

    हालांकि यह तकनीक हर तरह के अंधेपन का इलाज नहीं है. यह मुख्य रूप से एडवांस्ड ड्राई एज-रिलेटेड मैक्युलर डिजेनरेशन वाले मरीजों पर काम करती है, जो अब तक लाइलाज बीमारी मानी जाती थी. New England Journal of Medicine में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 84 प्रतिशत मरीजों ने चिप लगने के बाद पढ़ने की क्षमता हासिल की और उनकी देखने की क्षमता पांच लाइन तक बेहतर हुई.

    लंदन के आई रोग एक्सपर्ट और इस सर्जरी के प्रमुख सर्जन डॉ. माही मुकीत ने कहा कि “यह पहला ऐसा इम्प्लांट है जिसने मरीजों को ऐसा विजन दिया, जिसे वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल कर पा रहे हैं.” यह तकनीक आने वाले समय में दुनियाभर के करोड़ों AMD मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण बन सकती है. हालांकि यह अभी सिर्फ क्लिनिकल ट्रायल में उपलब्ध है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही NHS जैसे हेल्थ सिस्टम्स के जरिए आम मरीजों तक भी पहुंच सकेगा.

    इसे भी पढ़ें: Asrani Death: तिल-तिल तड़पता है इंसान और घुटने लगती हैं सांसें, इस खतरनाक बीमारी ने छीनी असरानी की जिंदगी

    Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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    जर्नलिज्म की दुनिया में करीब 15 साल बिता चुकीं सोनम की अपनी अलग पहचान है. वह खुद ट्रैवल की शौकीन हैं और यही वजह है कि अपने पाठकों को नई-नई जगहों से रूबरू कराने का माद्दा रखती हैं. लाइफस्टाइल और हेल्थ जैसी बीट्स में उन्होंने अपनी लेखनी से न केवल रीडर्स का ध्यान खींचा है, बल्कि अपनी विश्वसनीय जगह भी कायम की है. उनकी लेखन शैली में गहराई, संवेदनशीलता और प्रामाणिकता का अनूठा कॉम्बिनेशन नजर आता है, जिससे रीडर्स को नई-नई जानकारी मिलती हैं. 

    लखनऊ यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म में ग्रैजुएशन रहने वाली सोनम ने अपने पत्रकारिता के सफर की शुरुआत भी नवाबों के इसी शहर से की. अमर उजाला में उन्होंने बतौर इंटर्न अपना करियर शुरू किया. इसके बाद दैनिक जागरण के आईनेक्स्ट में भी उन्होंने काफी वक्त तक काम किया. फिलहाल, वह एबीपी लाइव वेबसाइट में लाइफस्टाइल डेस्क पर बतौर कंटेंट राइटर काम कर रही हैं.

    ट्रैवल उनका इंटरेस्ट  एरिया है, जिसके चलते वह न केवल लोकप्रिय टूरिस्ट प्लेसेज के अनछुए पहलुओं से रीडर्स को रूबरू कराती हैं, बल्कि ऑफबीट डेस्टिनेशन्स के बारे में भी जानकारी देती हैं. हेल्थ बीट पर उनके लेख वैज्ञानिक तथ्यों और सामान्य पाठकों की समझ के बीच बैलेंस बनाते हैं. सोशल मीडिया पर भी सोनम काफी एक्टिव रहती हैं और अपने आर्टिकल और ट्रैवल एक्सपीरियंस शेयर करती रहती हैं.

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